Monday, December 2, 2019

निर्भया

निर्भय हो निर्भया, नहीं साँस ले पाई जहाँ
क्या बात करें उस शहर,गाँव,गली की।
आज प्रियंका, कल फिर कोई अनामिका
अस्तित्व जिसका हो जाएगा तार-तार।
सह रही है वर्षों से घर-बाहर तिरस्कार,
कब तक चुप बैठे और सहे अत्याचार?
बोलने दो बहन- बेटियों को आज,अभी
वरना 'काली' बन करेगी दुष्टों का संहार।
बेटियाँ ही हैं क्यों संस्कारों की ठेकेदार,
बेटों को भी क्यों नहीं देते हैं संस्कार?
हर गली चौराहे पर है खड़ा दुःशासन
लाज बचाए कैसे ,वह असहाय बेचारी।
चार या दस वर्ष, या हो चालिस की नारी
कुदृष्टि से बचे कैसे, जहाँ हैं कई दुराचारी।
बालिकाओं पर ही है क्यों अंगुँली उठती
क्या बालक हैं यहाँ सारे ही सदाचारी?
सहजता,धैर्य, शालीनता का सबक त्याग
बुलंद करनी होगी ,हमें अब अपनी आवाज़।
मानवता व समाज की लेकर जिम्मेदारी
अब बेटी-बहू बनेगी, न्याय की अधिकारी।


Thursday, November 14, 2019

सुहाना बचपन


 😊🎈🎶🎉🍭🎉
मुट्ठी खोल,समेट लो बचपन
कहीं खो न जाए अलहड़पन।
चंचल ,चंदन सा चितवन
मासूम होता है बाल मन।
आज और कल याद रहे सदा,
हमारा, तुम्हारा, सबका बालपन।
आज का दिन, खुशियाँ है लाया
'बाल दिवस' हमने भी है मनाया।
गुब्बारे,टाफी,बिस्किट मन भाया
जीवन में बचपन को अपनाया ।
गीत, संगीत और कोलाहल से
हमने आज व्यवहार है सजाया।
अपने बच्चों संग बच्चा बन,
घर बाहर यूँ है धूम मचाया।
सुहाना बचपन जैसे लौटकर
आज हमारे आँगन हो आया।
🎈🎉🎶🍭😊



Saturday, November 9, 2019

मंथन

अयोध्या की भूमि का
होने को है मंथन आज।
उच्च विचारों से प्राप्त
होने को है प्रेम बंधन साज़।
राम रहीम सब एक हैं
ईश खुदा का करो अभिनंदन।
वाद विवाद में क्या रखा है?
मानवता का दो परिचय आज।
लहू दोनों का लाल ही है
फिर कैसा है वाद विवाद?
आसमाँ भूमि के बीच
बिखेरो हवा में प्रेम संवाद।
सभी ने माना हिंदुस्तान के
दोनों ही हैं सरताज।
विश्व को संदेश है देना
धर्म जाति से भी है ऊपर
मानवता का श्रेष्ठ भाव।
कायम रहे दोनों के मध्य
सदा स्नेह प्रेम का साथ।







गांधीगिरी पर कहानी


 Gandhigiri 😊💐
Stories Only in100 words

 एक शाम मेरी नज़र झुग्गी के बेबस महिला पर पड़ी जिसका पति उसे मार रहा था। मैं बचाव करने पहुँची, और लोग भी एकत्रित हो गए । मैंने उसके पति से पूछा कि किस कारण इसे मार रहे हो । महिला ने कहा, मैडम ये मेरे बच्ची को पढ़ने जाने नहीं देना चाहता है, फीस के पैसे से जुआ खेलता है। फिर मैंने डाँट लगाते हुए कहा कि थाने में मैं तुम्हारी शिकायत दर्ज करा दूँगी। मैंने मोबाइल में उसकी तस्वीर ली, ताकि पति के मन में डर घर कर जाए। उसने पैर पकड़ लिए और माफी माँगी। वहीं खड़ी सहेली ने हँसते हुए कहा, वाह! तुम्हारी गाँधीगिरी तो चल पड़ी।
..................😊.................

बस में बैठे युवक ने केले के छिलके को बस से बाहर फेंका। वहीं बारह वर्ष के एक बालक ने उस छिलके को उठा लिया। बस वाले युवक ने बाहर निकल कर फिर एक छिलके को नीचे गिरा दिया। उस बालक ने फिर से उठाया। नवयुवक ने स्टाप पर मेरे बगल में स्थान ग्रहण करने से पूर्व उस बालक को एक केला खाने को दिया, बालक ने केले को छीलकर उस युवक के करीब फेंक दिया और खाने लगा। युवक ने क्रोध में कहा कि यहाँ क्यों फेंक रहे हो, कूड़ेदान में क्यों नहीं डालते? तभी मैं तपाक् से बोल पड़ी कि फिर आपने नीचे क्यों फेंका? सर्वप्रथम खुद को बदलिए, महाशय।


Monday, October 28, 2019

पर्व है दीपों का




      पर्व है दीपों का

दिवाली की अगली भोर ,
देख मैं रह गया भौंचक्का।
बालकनी के कोने में,
सहमा कपोत मैंने देखा।
रात्रि के अंधियारे में ,
न जाने कब आ बैठा ?
देख मेरी ओर मानो 
व्यथा कुछ यूँ था कहता।
''पटाखों की धुंध में, 
अपना शिशु मैं खो बैठा ।
ध्वनि, वायु प्रदूषण का 
देखो प्रभाव है कैसा ?
घर तो मेरा छीन लिया 
ये बुद्धिजीवि है कैसा?''
कंकड़ पत्थर के मकानों ने 
सुकून हमारा है छीना ।
हिय पत्थर का हो गया जिसका 
सिर्फ़ सोचता है वह खुद का ।
पलकें गीली हो गई मेरी
पीड़ा महसूस कर जब देखा।
दीपावली पर्व है दीपों का
ध्वनि प्रदूषण फिर कैसा?
राम युग रहा नहीं अब
कलयुग है यह कैसा ?
आने वाली पीढ़ी व
बुजुर्गों के विषय में भी,
नहीं कभी है यह सोचता।
सिर झुका वह निवेदन करता
''दीप जला जीवन रौशन कर ,
खुशियों से घर का कोना /''







Thursday, October 17, 2019

मैंने क्या किया ?



मैंने किया क्या ?
सच तो है
आज उम्र के इस पड़ाव पर
पूछा गया है प्रश्न
तुमने किया क्या?
एक घर को छोड़ आई
नए मकान को घर बनाई।
और मैंने किया क्या ?
जो अपने नहीं थे,
उन्हें अपना बना ली।
मान सम्मान दिया,
प्यार, स्नेह भी किया।
पर मैंने किया क्या?
नव बीज भी रोपा स्नेह से
पौधे बनने तक ख्याल रखा।
साँझ सवेरे नित जतन कर
फल पाने का इंतजार किया।
आँधी में भी धैर्य न खोया,
उम्मीद का दीप जलाए रखा।
मुस्कुराकर हर पीर सही,
स्वाभिमान को गठरी में रखा।
और मैंने किया क्या?
बिखरे पल को सहेजती रही,
औरों को सर्वप्रथम है रखा।
कुछ प्रयास तुमने किया,
तो कुछ प्रयास हमने भी किया।
गर तुम आगे सदा रहे तो
हम भी साथ में थे खड़े।
अप्रत्यक्ष रूप में ही सही,
तिनका बन कर ही डटे रहे।
पर मैंने क्या किया ?
सच ही तो है कभी
आगे आकर जताया ही नहीं।
अपने कर्मों को अहमियत,
हमने खुद ही दिया नहीं।
सच ही तो है कि
हमने क्या ही किया?
चादर, पर्दों, दीवारों की धूल
साफ़ तो हमने कर दिया।
पर कभी औरों के मन के
धूल को साफ ना हमने किया ।
सच ही तो है, हे ईश्वर
मैंने कुछ तो नहीं किया।
उम्र जाने किधर गई?
चेहरे पर झुर्रिया आ गई।
आईना जब भी हूँ देखती
अक्स मेरा है पूछता कि
आज तक मैंने क्या किया ?




Saturday, October 12, 2019

मेरा बचपन ( बाल कविता )

कहाँ गया वह?
भोला बचपन।
कागज़ की कश्ती से ही
खुश हो जाया करते थे हम।
मिट्टी के गुड्डे गुड़ियों संग,
सदा खेला करते थे हम।
कहाँ गया वह?
भोला बचपन
कागज़ की जहाज़ बना
हवाओं में उड़ाया करते थे।
बच्चों की ही रेल बना,
झूमा गाया करते थे हम।
लूडो, कैरम घर में खेल
कोलाहल करते थे हम।
रंग बिरंगी तितलियों
संग बगिया में भागा करते थे।
कहाँ गया वह?
भोला बचपन
रंगीन पतंगों को उड़ा,
अंबर को छूआ करते थे हम।
छोटी छोटी बातों में ही
बेहद खुश हो जाया करते थे।
सपने कुछ पूरे होते
और कुछ अधूरे ही रहते
फिर भी मुस्कुराया करते थे हम।
कोई लौटा दे वो
मेरा बचपन।
जिसमें सदा ही हर पल
हर हाल में खुश रहते थे हम।

Wednesday, October 2, 2019

भावपूर्ण श्रद्धांजलि

हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता )



 हाड़ मॉंस का था वो इंसान,
रौशन जिसके कर्म से है जहान।
प्रतिभा-निष्ठा कर देश के नाम
सुदृढ़ राष्ट् बनाने का था अभिमान।
भारत रत्न‘ का मिला जिसे सम्मान
गूंजे जिसके स्वर कानों में
घरमुहल्ले  गली तमाम।
नारों से जागृत होता इंसान
जय जवानजय किसान।
हाड़ मॉंस का था वो इंसान,
घड़ीधोतीलाठी थी जिसकी पहचान
समय के पाबंद रहे सदा ही
लिया किए सदैव प्रभु का नाम।
प्रातः से सायं तक तत्पर रहे
 लेते थे कोई विश्राम।
आजादी दिलवाई हमको
सत्य-अहिंसा की बाहें थाम।
हाड़ मॉंस का था वो इंसान।
मॉ के लाल थे दोनों सपूत
उन महापुरुषों का कर सम्मान।
सादा जीवनउच्च विचार ’
स्वपन उनके चलो करें साकार।
हलधर बन धरती को गले लगाएॅ,
स्वदेशी बन खादी अपनाएॅ।
राष्ट्पिता’ को दो यूॅ सम्मान,
दो अक्टूबर को ही नहीं मा़त्र
आजीवन तक करो यह मंत्र जाप।
चलो मन में लाएॅ एक विचार
सत्यमेव जयते’ से गूजे संसार।
बापू-शास्त्री ने देकर योगदान,
मॉं के सपूतों ने रखादेश का मान। 
हाड़ मॉंस के थे वे दोनों इंसान
रौशन कर गए ,देश का नाम।
       
                                ---  अर्चना सिंह ‘जया

 लाल बहादुर शास्त्री जी व गाँधी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 

Sunday, September 22, 2019

हे मानव

अंधियारे से सीख, हे मानव
जीवन इतना भी सरल नहीं
जो अब भी न सीख सका तो
खो कर पाने का अर्थ नहीं।
धन, मकान,अहम् धरा रहेगा
जाएगा कुछ तेरे साथ नहीं।
समय का चक्र ही है सिखाता
धर्म ,सदाचार के बाद है कहीं।
अपना पराया जल्द समझ ले
वक्त का साया गुम हो न कहीं।
पछता कर क्या कर पाएगा?
न होगा जब तेरे पास कोई।
क्षमा,दया,सुविचार ही धर्म है
मानवता का है श्रृंंगार यही।
हर बात में सीख हँसना हँसाना
रोने के लिए तो है उम्र पड़ी।
जीवन का कर रसपान हर दिन
व्यर्थ ही न गुजर जाए यह कहीं।
जीवन खुद में ही है मधुशाला
खोज इसी में नित चाह नई।



Saturday, September 14, 2019

हिन्दी दिवस .

हिन्दी हैं हम (कविता )

देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान,
हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान। 
बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार,
घर द्वार से बाहर भी कायम करने दो अधिकार।

कोकिला-सी मधुर है, मिश्री-सी हिन्दी बोली,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सबकी हमजोली।
भिन्नता में भी है, यह एकता दर्शाती,
लाखों करोंड़ों भारतीय दिलों में है,जगह बनाती। 

दोहा, कविता, कहानी, उपन्यास, छंद,
हिन्दी भाषी कर लो अपनी आवाज बुलंद। 
स्वर-व्यंजन की सुंदर यह वर्णशाला,
सुर संगम-सी मनोरम होती वर्णमाला। 

निराला, दिनकर, गुप्त, पंत, सुमन,
जिनसे महका है, हिन्दी का शोभित चमन। 
आओ तुम करो समर्पित अपना तन मन, 
सींचो बगिया, चहक उठे हिन्दी से अपना वतन। 

                                                                                 ----- अर्चना सिंह जया
                                                                                    [ 12 सितम्बर 2009 राष्ट्रीय सहारा ‘जेन-एक्स’ में प्रकाशित ]

Thursday, September 12, 2019

तुझी से

तुझ से हैं साँसे मेरी
तुझ से है ज़मीं आसमाँ।
तुझ से है दिन रौशन
तुझ से ही है रातें जवाँ।
तुझ से है महकती शाम
तुझ से सजते हैं अरमाँ।
गीत, संगीत मुस्कुराहट तुम्हीं से
सुकून आया मिलकर तुम्हीं से।।
तुझी से है दिल की धड़कन
तुझी से जिंदगी का कारवाँ।
तुझी से है चेहरे पर नूर
तुझी से है फिजा़ में सुरूर।
पहले भी था,आज भी है
अपने प्यार पर मुझे गुरूर।


Thursday, September 5, 2019

नमन है श्रद्धा सुमन


नमन है श्रद्धा सुमन (कविता)


सतकर्म कर जीवन किया है जिसने समर्पित,
उन्हीं के मार्ग पर चल, उन्हें करना है गर्वित।
माता -पिता व गुरुजनों का मान बढ़ाया जिसने,
अब कर जोड़, शीश नमन उन्हें करना है हमने।
वतन को अब रहेगा सदैव उन पर अभिमान ,
बच्चे ही नहीं बड़े भी उन्हें करते हैं सलाम।
‘भारत रत्न 'भी कहलाए श्री अब्दुल कलाम,
श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे, मानव उम्र तमाम ।
वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, मार्गदर्शक भी कहलाए वे,
भारतीय होने के सभी फर्ज शिद्द्त से निभाए वे।
‘मिशाइल मैन ' के खिताब से भी नवाजा गया,
व्यक्तित्व जिसका वतन का दामन महका गया ।
जमीं का तारा आसमॉ का सितारा हो गया ।
मानवता का पाठ पढ़ाकर शून्य में विलीन हो गया ।
उदारता से परिपूर्ण था, हृदय जिसका सदा,
सर्वोच्च शिखर प्राप्त हो ऐसा व्रत लिया ।
लगन औ मेहनत के मिशाल बने स्वयं वे,
जो न सोने दे, ऐसा स्वप्न सदैव देखा किए ।
सुनहरे सफर में ‘अग्नि  ,‘पृृथ्वी  और ‘आकाश  साकार किया,
‘सुपर पावर  राष्ट् हो, सोच पूर्ण योगदान दिया ।
सादा जीवन उच्च विचार का आभूषण धारण कर,
सम्पूर्ण जीवन देश के नाम न्योछावर किया ।
युवाजन अब चलो उठो, प्रज्ज्वलित करो मशाल
स्वर्णिम भारत का मन में अब कर लो विचार ।
जो समााज का स्वेच्छा से करते हैं उद्धार,
ऐसे शिक्षकों को है हमारा  बरहम्  बार प्रणाम ।
                                                                
  [  श्री ए पी जे अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि]
                                                                                          ---------- अर्चना सिंह ‘जया’

Sunday, August 25, 2019

गज़ल


न तलाशा करो ,सामानों में उनके निशाँ।
जख्म गहरें है दिलों पे, खोजो न यहाँ वहाँ।

 दूरियों की कसक बढ़ती जाती है हर लम्हाँ

दिन खामोश सी और रात हो जाती है बेज़ुबा।

अपने ज़बातों को न संजोया करो सिर्फ पन्नों में
साथी संग बाँटा करो बिखरने न दो जहाँ तहाँ।

Saturday, August 24, 2019

जय हो नंदलाल


जय ,जय हो नंद लाल
देवकी ने जन्म दिया,
यशोदा ने लाड प्यार।
पूतना का कर संहार,
गोपाला ने भरी मुस्कान।

जय, जय हो नंद लाल
गेंद यमुना में डार,
कालिया का किया दमन।
मथुरा जन हुए प्रसन्न,
गोपाला को कर शीश नमन।

जय, जय हो नंद लाल
मुख में ब्रम्हाड देख,
यशोदा हुई चकित अपार।
माखनचोर,नंद किशोर
गोपियाँ करती पुकार।

जय,जय नंद लाल
बकासुर ,अघासुर  वध कर
मथुरा का किए उद्धार।
कंस के अत्याचार को
हंँसी खेल में दिया टाल।

जय, जय हो नंद लाल
ऊखल बंधन ,माँ संग रूठन
नटखट की लीला अपार।
बाँँसुरी धुन पर पशु पक्षी
गोपियाँ भी थी निहाल।

जय,जय हो नंद लाल
यमुना तट गोपियों संग
कृष्णा की लीला अपार।
रास रचे राधे संग,
बैठ कदम की डार।

जय,जय नंद लाल
सुदामा से गले मिल
जीवन दिया उबार।
प्रेम ,भक्ति को नत हो
द्रोपदी का हरे लाज।

जय, जय हो नंद लाल
बल को छल से हरे
छल को बल से मार।
धर्म, सत्य का साथ दे
कुरुक्षेत्र में दिए ज्ञान।
जय, जय हो नंद लाल।

Tuesday, August 20, 2019

कुदरत की पुकार

कुदरत की हाहाकार सुन,मन कुछ विचलित हो चला।
भूल कहाँ हो गई? हमसे,ये प्रश्न मन में है फिर उठा।
वक्त रहते सम्भल जा तू,करुण रुदन है प्रकृति का।
तटिनी के विरह गीत से,छलनी हुआ धरा का कोना।
प्रण ले स्वयं से तू आज,धरोहर को नहीं है वंचना।
विरासत में मिली संपदा को,आगे बढ़ तुम्हें है सहेजना।
अपनी भूल से सीख कर,सदाचार मन में सदा रखना।
जल,थल,वायु प्रदूषण पर नियंत्रण बनाए रखना,
वरना भावी पीढ़ी भटकने को विवश होगी यहाँ वहाँ।
जड़ी बूटी औषधि धरोहर प्रकृति है सहेजे हुए संपदा ,
बुद्धिजीवी संभल जा तू वक्त ने दे अच्छा अवसर यहाँ।
प्रकृति पुकार सुन चल नभ,जल,थल का कर संरक्षण 
जल ही जीवन है वन-उपवन को न करना दोहन।


Thursday, August 1, 2019

कहर में जि़ंदगी

       कहर में ज़िंंदगी

जल कहर में फंसी ज़िंंदगी ,
कुदरत के आगे बेबस हो रहे
बच्चे, बूढ़े व जवान सभी।
इंसान के मध्य तो शत्रुता देखी,
पर यह कैसी दुश्मनी ठनी?
मानव व कुदरत के बीच,
बिन हथियार के जंग है छिड़ी।
संयम का बांँध तोड़ नदी-जलधि,
सैलाब में हमें डुबोने निकली।
यह जलजला देख प्रकृति का,
नर-नारी,पशु-पक्षी भयभीत हैं सभी।
प्रतिवर्ष मौन हो बुद्धिजीवी,
देखा करते तबाही का मंज़र यूँ ही।
मगरमच्छ आँसू व सहानुभूति,
दिखा भ्रमित करती सरकार यूँ ही।
न जाने कब सचेत होंगे हम?
और उभर पाएँगे विनाश बवंडर से।
आपदा की स्थिति से वाकिफ़ सभी,
किंतु सजग व तत्पर होते हम नहीं।
कुदरत के संग जीना तो दूर,
उसे सहेजना भी गए हम भूल।
उसी की आँगन में खड़े,
उसके बर्चस्व को ललकारने लगे।
शिक्षा व ज्ञान किताबों में बंद रख,
मानवता से परे दफ़न हो रही जिंदगी।
                   -----  अर्चना सिंह जया

Friday, June 21, 2019

Dayaa ka Dwaar' story


'Gate of Mercy' name in English. Translated by Archana Singh jaya.



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योग दिवस par Kavita

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता)

 योग को शामिल कर जीवन में
 स्वस्थ शरीर की कामना कर।
 जीने की कला छुपी है इसमें,
 चित प्रसन्न होता है योग कर। 
 घर ,पाठशाला या दफ्तर हो चाहे
 योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
      शिशु, युवा या वृद्ध हो चाहे
      योग ज्ञान दो, हर गॉंव-शहर।
      तन-मन को स्वस्थ रखकर
      बुद्धिविवेक है विस्तृत करना।
      इंद्रियों को बलिष्ठ बनाने को
      योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
विज्ञान के ही मार्ग पर चलकर
योग-साधना अब हमें है करना।
आन्तरिक शक्ति को विकसित करता,
योग की सीढ़ी जो संयम से चढ़ता।
ईश्वर का मार्ग आएगा नज़र,जो
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
     दर्शन, नियम, धर्म से श्रेष्ठ  
     योग रहा सदा हमारे देश।
     आठों अंग जो अपना लो इसके
     सदा रहो स्वस्थ योग के बल पे।
     जोड़ समाधि का समन्वय कर
     योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।

                                                                                          21 june   अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर
                                                                                                    - अर्चना सिंह 'जया' 

Thursday, June 6, 2019

सुप्रभात

कोयल की कूक सुबह सुनाई दे गई,
मन में सोए अहसास फिर जगा गई ।
छू कर तन को,पवन जब गुजरती है,
कोई ख़लिश सी मन में फिर जगती है।
अमिया की टहनी पर चढ़ना-झूलना,
पल में मधुकर के पीछे दौड़ना भागना।
बाबा की हथेली से बताशे किशमिश ले,
वो माँ की स्नेह आँचल में आकर छुपना।
बालपन की वो अठखेलियाँ याद आती,
बाबुल की याद तरोताज़ा कर जाती है।
प्रातः पिक गाकर सबका मन है लुभाती,
उदासी में भी मीठा रस घोल है जाती।

Wednesday, June 5, 2019

Poem

आज का वक्त हो सब.को मुबारक,
सिर झुकाकर करो खुदा की इबादत।
प्रेम मोहब्बत मज़हब है हमें सिखाता,
एक रंग, एक सूत्र में है हमें पिरोता ।
चाँद अपनी मुस्कुराहट है बिखेरता,
'ईद का दिन हो मुबारक ' ये है कहता।

Friday, March 8, 2019

Happy Womens Day💐

😊
उसी से घर-आँगन का मान,
उसी से रौनक सुबह व शाम।
वही है राधा,सीता ,सती
वही है काली व दुर्गा भी।
सदा करो उसका सम्मान,
सुख का होगा फिर आह्वान ।
आदर दे कर ,आदर है पाना
धैर्य प्रेम की है वो प्रतिमा।
सरस्वति,लक्ष्मी स्वरुप वो
जीवनदायनी है परिवार की।
औरत की महिमा है महान,
शब्दों न सिमट सकती बखान।
दो परिवार का वो है अभिमान,
कायम रखना उसका स्वाभिमान।
       😊Happy Womens Day💐

Friday, March 1, 2019

अभिनंदन का अभिनंदन

🇮🇳🙏🇮🇳🙏
भारतीयों की आन,बान,शान
माता - पिता का अभिमान।
करने को अभिवादन आज,
झूम उठी है ज़मीं और आसमान।
जिसके शौर्य की हो रही है चर्चा
हर गली, मोहल्ले शहर तमाम।
ढ़ोल, मंजीरे ,पुष्ष व संगीत गा,
करो'अभिनंदन' का,अभिनंदन आज।
☺🙏☺

Tuesday, February 26, 2019

जय हिंद 🙏

🙏🇮🇳🙏
प्रेम,स्नेह,आभार प्रकट सदा ही करते आए हम,
पर यदि ललकारोगे तो,बारूद बन बरसेंगे हम।
🙂
लहू हमारे भीतर भी है,यह अब बतला देंगे हम।
तिरंगे की ख़ातिर दुश्मन को, धूल चटा देते हैं हम।
       ...... अर्चना सिंह 'जया' 😊

गुलाल मलकर देशभक्तों ने खुशी आज है दर्शाया।
शहादत का बदला लेकर,देश ने सुकून है पाया।
होली, दिवाली दोनों साथ ही देखो आज यूँ मनाया।
हिन्दुस्तानियों के दिलों को केसरिया रंग है भाया।
😊

Sunday, February 17, 2019

जि़दगी

                💐ज़िंदगी💐

क्या गलत है, क्या सही है? समझ नहीं पायी थी ज़िंदगी , 
जीवन के चैराहे पर तन्हाॅ, कश्मकश में थी सहमी ज़िंदगी। 

छाॅंव-धूप सी, आग-पानी सी और बारिश में इंद्रधनुषी सी, 
कभी प्यारी सी लगे है जिं़दगी, तो कभी अनबुझ पहेली सी।

नन्हें करों से चलते-चलते, कदमों पर चल पड़ी यूॅं जिं़दगी,
चार पहर कब लम्हों ,दिनों, वर्षों में तबदील हो गई जिं़दगी। 

सपनें दिखाती, उड़ना भी सिखाती, दूर कर देती है जिं़दगी,
पल पल का हिसाब है रखती, जाने कब छल गई जिं़दगी।

वादा किया था उम्र भर का, क्यूॅ रुसवा कर गई तू जिं़दगी,
मझधार में लाकर हाथ है छोड़ा, ख़ता तो मेरी बता जिं़दगी। 
😊😊

                                ............................. अर्चना सिंह‘जया’

Friday, February 15, 2019

शत् शत् नमन

🙏🙏
गगन भी झुका है जिसके सज़दे,
धरा भी रो रही है जिनके वास्ते,
जन जन की हो गई आँंखें नम,
वतन के शहीदों को पुष्प नमन ।💐💐
         
              ..... अर्चना सिंह जया
🙏🇮🇳🙏
अब तो जागो देश के जवानों,
राष्ट् की खातिर एक हो जाओ।
ध्वजा का मान तुम्हें है रखना,
आवाज़ बुलंद कर आगे आओ।
साँसें न जाए ,उनकी खाली
जिन्होंने अपनी प्राण है गँवाई।
🙏🇮🇳🙏

🙏🙏
सतकर्म कर जीवन किया जिसने समर्पित,
उन्हीं के मार्ग पर चल, उन्हें करना है गर्वित।
माता -पिता व राष्ट् का मान बढ़ाया जिसने,
कर जोड़, शीश नमन उन्हें करना है हमने।
वतन को रहेगा सदैव ही उन पर अभिमान ,
बच्चे ही नहीं बड़े भी उन्हें करते हैं सलाम।
🙏🇮🇳🇮🇳🙏
                         ....अर्चना सिंह 'जया'

Tuesday, January 1, 2019

Happy New Year 😊

नव वर्ष का आगमन ( कविता )

                    
गुजरे कल को कर शीश नमन,
मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।
         वसंत के आगमन से पिहु बोल उठा,
         फिर से महकेगा वसुधा और गगन ,
          मन दर्पण-सा खिल उठेगा सबका,
         नूतन पुष्पों व पल्लव से सजेगा चमन।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
           चारों तरफ सुगंधित मंद पवन हो,
           झुरमुट लताओं में कलरव हो,
           आँगन में गूँजती किलकारी हो,
           युवकों के मन में विश्वास प्रबल हो।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
          रिश्तों में अटूट प्रेम का हो बंधन,
           घरों में पनप उठे महकता उपवन,
           अब समाज में हो जाए नव मंथन,
          वसुंधरा में गूँजे सत्यं, शिवम् ,सुंदरम्।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
         नई उम्मीद,नया सवेरा से सजे वतन
         आशाओं को संजोएॅं,निराशा का हो पतन,
         मोमबत्ती  को थामें बढ़े चलें ,क्यों न हम?
         नूतन वर्ष को सुसज्जित कर,दूर करें तम।
  गुजरे कल को कर शीश नमन,
 मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।                      

                                   अर्चना सिंह‘जया’