Tuesday, June 16, 2020

खुद की खुशी


मायानगरी है ये दुनिया ही
नकाब पहना है सबने यहां।
उम्दा कलाकार हैं हमसभी
सच से चुराकर आंखें देखो,
कृत्रिम जीवनशैली को
समझ बैठे हैं वास्तविक जहां।
यथार्थ से होकर दूर हम,
भटक गई हैं राहें जहां।   
औरों की झूठी तसल्ली के लिए
खुद को गिरवी रखते हैं सभी।
मकान बहुत ही सुन्दर है,
ऐसा सभी कहते हैं यहां।
दीवारों पर लगी पेंटिंग,
रंग बिरंगी टंगी तस्वीरें
खूबसूरती को हैं बढ़ाते।
पर मन एक कोना फिर भी
रह गया खाली कहीं यहां।
इसे सजाएं कैसे, कहो अब
खुशियां, ठहाके,रिश्ते,प्यार
सहज मिलते नहीं बाजारों में।
हां, दर्द को छुपाया मुस्कानों से
तनहाई को सजाया गीतों से,
ऊंचाई को छूने की चाहत ने
साथ छुड़ाया अपनों से।
सौहरत,दौलत, मकान, गाड़ियां
पाकर भी मैं रहा अकेला जहां।
विचित्र है ये दुनिया यारों,
सब पाकर भी कभी कभी
खुश नहीं हो पाता मानव यहां।
तलाश खत्म होती नहीं उसकी
खुद को खो देता है वो यहां।
जिंदगी इक पहेली सी
जाने क्यों हरपल लगती यहां?
खुद की खुशी है जरूरी
न करना खुदकुशी कभी यहां।




Thursday, June 4, 2020

धिक्कार है तेरा

मैं गजानन पूजनीय
क्या गुनाह किया मैंने?
हां, शायद बुद्धिजीवी पर
कर बैठा विश्वास मैंने।
नहीं की थी कल्पना कभी
अमानवीय व्यवहार की।
मेरे जीवन के साथ ही
कर बैठा निर्मम हत्या
मेरे गर्भ में पल रहे,
मासूम नन्हें सुमन की।
क्यों कर्म हीन,भाव हीन
हो गया है मानव?
जानवर हैं हम
पशुता का व्यवहार
दर्शाता है तू क्यों?
कब अपराधबोध हो
समझ सकेगा तू ?
उसके ही दुष्कर्म का
परिणाम है आज
प्राकृतिक, जैविक आपदा।
मानव के संग
पेड़-पौधे ही नहीं
पशु-पक्षी,जीव जंतु भी
धरोहर हैं इस धरा की।
बेजुबान हैं हम पर
हिय में है स्नेह अपार।
क्रूरता कितनी भरी है
तेरे हृदय में बता।
धिक्कार है तेरे
मानवता होने का,
शर्मसार कर दिया
आज फिर इंसानियत का।
वैहशी हो चला है मानव
क्यों अधर्मी है हो रहा?
सोच हो चली कुंठित,
व्यवहार में विष घोल लिया।