किसान की रैली क्यों शर्मसार कर गई ,
हिंसा को बढ़ावा देकर तलवार हाथ में थाम,
लोकतंत्र की आड़ में ऐतिहासिक कहानी लिख गई।
लाल किले के दामन पर कर तांडव नृत्य,
किसान ने क्यों थामा अराजकता का हाथ,
"अहिंसा परमो धर्म" जिस देश की है शान,
किसी भी समस्या का हिंसा नहीं है समाधान।
किसानों ने शर्त से मुकरने का इतिहास रच दिया।
किस भेष में छुपे हुए उपद्रवी तमाम,
खुद को कहते हैं वे किसान।
जनता की सम्पत्ति को तहस-नहस करना,
देश में अशांति का वातावरण बना दिया।
क्या किसानों का यह शोभनीय है व्यवहार?
जमकर हंगामा,बवाल मचा कर खड़ा किया सवाल।
शोभनीय दिवस में अशोभनीय व्यवहार मानव का,
किसान अपने व्यक्तित्व को यूं तार तार कर रहे ,
हरियाली का प्रसार करने वाले, क्यों हथियार थाम रहे ?
तिरंगे को सलाम न कर, अपमान किले का कर दिया।
राष्ट्र का हित करने वाले, हित का मार्ग त्याग दिया।
धैर्य का ध्वज छोड़ क्यों अहित का चादर ओढ़ लिया ?
"जय जवान,जय किसान" स्वर गूंजते थे जहां,
नारे के स्वर से करने लगे शंखनाद यहां ।
नारेबाजी,दंगे,फसाद हल नहीं किसी सोच का,
आपसी सहयोग, विचार है जवाब नई राह का।
क्यों हो रहे भ्रमित लोग स्वच्छ व कोमल हिय वाले,
अन्नदाता हो तुम चहेते जो देश प्रेम गीत दोहराते।
----- अर्चना सिंह जया