मां ऐसी होती है।
अपने अश्रु को छुपा,
सदा मुस्कान बिखेरती है।
अपने सपनों को दफना कर
बच्चों को स्वप्न पर देती है।
मां ऐसी होती है।
अपनी थाली को परे रख
बच्चों को भोजन परोसती है।
अपनी नींद से हो बेपरवाह
बच्चों को लोरी-थपक्की देती है।
मां ऐसी होती है।
हाथों के छाले को ढंक कर,
चाव से रोटी सेंका करती है।
स्वयं के भावों को छुपा
बच्चों के जीवन में रंग भरती है।
मां ऐसी होती है।
बिस्तर गीला गर हो मध्य रात्रि
सूखे नर्म बिस्तर हमें देती है।
तेज़ तपते हुए ज्वर में
पानी की पट्टी रख सिरहाने होती है।
मां ऐसी होती है।
जाने कैसे वह बिन कहे
मन के भाव सदा पढ़ लेती है।
गर अंधियारा छाये जीवन में
थाम हाथ राह रौशन करती है।
मां ऐसी होती है।
कभी सख्त मन से डांट लगा
खुद भी रोया करती है।
कभी नीम सी कड़वी तो
कभी शहद सी मीठी बातें करती है।
मां ऐसी होती है।
मां धरती सी,कोमल पुष्प सी
चंदन बन महका करती है।
हिय विशाल है उसका जहां
ममता,स्नेह,प्रेम,दया,क्षमा समेटे रखती है।
* अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मां ऐसी होती है।