Monday, May 18, 2020

क्यूँ मजदूर मजबूर हुए

क्यूँ जीवन सफर में मजदूर,
इतने मजबूर आज हुए।
जिस शहर को आए थे कभी,
वहीं से वे भूखे- बेघर हुए।
मशीनें जहाँ उनकी राह देखती थीं,
चूल्हे से धुआँ उठा करती थींं।
पेट की तृष्णा कम हो जाया करती,
परिवार को दो वक्त की रोटी,
कभी यहाँ मिल जाया करती थी।
फिर कैसी हुई लाचारी,
कोरोना की छाई महामारी।
जिस राज्य ने थामे थे हाथ कभी,
आज मझधार में अकेला छोड़ दिए।
क्यूँ जीवन सफर में मजदूर मजबूर हुए।
पटरी, सड़क चल दिए नंगे पग,
गाँव की ओर आज रुख हैं किए।
तप्ती धूप, रिक्त हाथ, छाले पैरों तले
उम्मीद की गठरी कांधों पर ,
जिंदगी तलाशते अपनों  के लिए।
वही शहर, गली, मुहल्ला आज
अजनबी बन गया है जाने कैसे ?
स्वदेश में रहकर भी असहाय,
प्रवासी का जिन्हें नाम दिया।
पल में पराया किया वहाँ,
जहाँ खून को पानी उसने किया ।
जिस राज्य को सर्वस्व सौंपा,
पलभर में वहींं क्यों बेगाना हुआ?
माँ है कि पेट दबाए बैठी,
बच्चों की नम आँखें जैसे हों कहतींं।
'बाबा चार दिन बीत गए हैं सोचो,
भूख से बहना बिलखती है देखो।'
चलो गाँव की ओर चले हम,
पुरखों की जम़ीन से नाता पक्का।
अपनी माटी का घर वह कच्चा,
खेत खलिहान को लौट चलें अब।
पहचान नहीं रही अब अपनी देखो
राशन समाप्त हो चुका है अब तो,
साइकिल,रिक्शा, ठेले पर या पैदल ही चल।
दिल भर आता है दर्द सुनकर यारा,
मजदूर से है गाँव ,शहर,देश हमारा
फिर क्यों मजबूर हुआ है मजदूर बेचारा?





Wednesday, May 6, 2020

अजीब विडंबना

अजीब विडंबना है देश की
जिंदगी या कोरोना में से
किसका चयन करें इंसान?
इतनी सी बात नहीं समझ रहा,
उल्लंघन कर्तव्यों का कर रहा।
दूध के लिए बच्चे हैं कतार में,
राशन के लिए माता बहनें हैं खड़ी।
विपदा की इस घड़ी में देखो,
पुरुष की आत्मपूर्ति के समक्ष
संवेदनाएँ जैसे धूमिल हुई पड़ी।
अमृत रस है न जाने ये कैसा ?
मद की चाहत हुई है सर्वोपरि।
पलभर का धैर्य नहीं देखो इनको,
स्वहित हो गया परिवार से श्रेष्ठ।
शराब से दूर ये रह नहीं सकते
खो रहा आत्मसंयम वह कैसे ?
चावल,दाल,रोटी की जरुरत
से क्या है यह अधिक जरुरी?
मदिरा पान कर सेहत से खेलना ,
मदहोश हो परिवार की शांति हर लेना।
धन की कमी कहाँ है देखो ?
मन पर संयम खो बैठा है वह तो।
सुख दुःख में मदिरा पान कर
मानवता की सीमा लांघ रहा वो।
एक बूँद की तलब ऐसी भी क्या?
मानसिक संतुलन जैसे खो बैठा।
वीरों की वीरता को देखो,
देशहित कर्म करना कुछ सीखो।
तुम परिवार व समाज हित के
दायित्वों को ही निभा लो।
इंसान हो गर प्रथम तुम
इंसानियत को ही संभालो।
जीवन अपनों के लिए देकर
सद्कर्म का राह अपना लो।
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