Wednesday, August 31, 2016

अब तो कर ले अपने मन की ( कविता )

                 

चल सोच बदल जीवन की,
अब तो कर ले अपने मन की।
न तो नौकरी की चिंता सिर पर ,
न बच्चों की किलकारी सुनाई देती ।
अब न रही भाग-दौड़ जीवन की ,
अब तो कर ले अपने मन की।                      
सदा तू जीआ औरों की खातिर ,
रात की नींद दी बच्चों की खातिर ।
प्रातः सर्वप्रथम उठ तू जाती  ,
अब तो कर ले अपने मन की।                      
पिता ने जिम्मेदारी पूरी कर ली,
मॉं भी दायित्व भरपूर निभा ली।
इस पल भी औरों की सुनते,
चल,अब तो कर ले अपने मन की ।
घर-ऑगन है अब भी अपना,
प्रातः चिड़ियों की चूॅंचॅूं सुन चल।
शांत मन से सूर्य प्रणाम कर,
अब तो कर ले अपने मन की।
दोनों प्रातःसैर को चल लें,
भूले बिसरे किस्से याद कर लें।
नोंक-झोंक आज भी है होती
पर, अब तो कर ले अपने मन की।
बाग-बगीचे की सैर हम कर लें
खुलकर हॅंस लें ,खुलकर जी लें।
यार-दोस्त संग कुछ पल रह ले
क्यों न कर ले अपने मन की ?
सत्तर-अस्सी के पड़ाव पर  
इच्छा कहॉं थमने को आती ?     
चिंता हम क्यो करते कल की ?  
अब तो कर ले अपने मन की।
कल,आज और कल की छोड़,
रौशन कर हर पहर जीवन की ।        
सोच बदल, चल अब जीवन की             
अब तो कर ले अपने मन की।

                           ----- अर्चना सिंह‘जया’

Sunday, August 28, 2016

गुलाब ( कविता )



गुलाब को जब मुस्कुराते देखी,
पूछी, ‘कैसे रहता है तू
इतना खुश सदा ?’
समीर की बाहों में है झूलता,
कॉंटों संग रहकर मंद मुस्काता,
जीने का ढंग हमें है सिखाता।
इस पर बोल उठा गुलाब,
‘किस्मत को क्यों रोऊॅं
जो कॉंटें मिले हों दामन में ?’
जो मिला जैसा मिला,
बहुत है मिला मुकद्दर से।
रंग मिला, खुशबू मिली,
कोमलता भी है बनी हुई।
बालाओं के सिर पर सजता ,
देवों के चरण भी छुआ करता।
सुन गुलाब की बातें हुई चकित मैं।
दिन का रिश्ता रात से है जैसा,
सुख और दुःख का भी
रिश्ता है कुछ वैसा।
कॉटे ने सुनी जब बातें
बोला वो भी मौन त्याग कर,
‘मसल नहीं सकता तुझे कोई
लहू के रंग हाथ रंगेगा।’
‘रक्षक हूॅं मैं तुम्हारा प्रिये,
दिलाता हॅूं विश्वास ये।’
गुलाब और कॉंटें की सुनकर
उनका रिश्ता समझ में आया।
भावुक हो, की शीश नमन मैं,
गुलाब संग कॉंटे का होना,
जीवन को दिखता है आईना।
                   
                                   ----------------अर्चना सिंह जया

Wednesday, August 24, 2016

जय जय नन्दलाल

लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का
विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप  का।
दर्शन मात्र से जीवन हो जाए धन्य,
जो भज मन राधेकृष्ण राधेकृष्ण।
द्वापर में जन्में, देवकी के गर्भ से,
धन्य हुई भूमि, देवों के आशीष से।
कारागार से वासुदेव ले, टोकरी गोपाल की।
चले यमुना पार वे गोकुल धाम को,
नन्द को सौंप आए, अपने ही पूत को।
कंस से दूर किया, देवकी के लाल को,
यशोदा धन्य हुई, पाकर गोपाल को।
वात्सल्य प्रेम का अमृत पान करा,
पालने को झुलाती, मुख को चूम के।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
नन्द -यशोदा के आँगन के पुष्प से,
महका गोकुल वृंदावन नवागन्तुक से।
ओखल पर पाँव रख माखन चुराए लिए,
'माखनचोर'नाम से गोपीजन पुकारते।
नटखट लाल की बालक्रीडा निहारती,
गोपियों की शिकायत, माँ बिसारती।
गोकुल में पूतना और बकासुर वध से
अचम्भित कर दिया, अपने ही कर्म से।
लाल को अबोध जान, विचलित मन हुआ
मुख में ब्रह्माण्ड देख, माँ को अचरज हुआ।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
यमुना के तट, कदम के डार पर
मधुर तान छेड़, मुरलीधर मन मोहते।
कालिया फन पग धर, कंदुक ले हाथ में
प्रकट हुए श्याम मधुर मुस्कान ले।
सहज जान कर, गोवर्धन उठाए लिए
इंद्र के प्रकोप से, सबको प्राण दान दिए।
अर्जुन संग सुभद्रा को ब्याह कर
भ्राता का फर्ज भी, निभाए मुस्कुरा कर।
शंख, चक्र, गदा, पद्म ,पिताम्बर
व वनमाला से कन्हैया शोभित हो,
रूक्मिणी, सत्यभामा संग ब्याह किए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
कृष्ण की दिवानी भई, मीरा प्रेमरंग के
गोपियों संग स्वांग रचे, प्रेम के रंग से।
कर्म को धर्म मान सबका उपकार किए
द्रौपदी का चीर बढ़ा, रिण उतार दिए।
मुट्ठी भर चावल ले, मित्रता का मान किए
सर्वस्व दान दे, सुदामा को तार दिए ।
घर्म, करूणा, त्याग,ग्यान पाठ पढ़ा चले
प्रेम मार्ग समस्त जगत को दर्शा चले।
जीवन का सार वे अर्जुन को बता दिए,
कर्म से ही धर्म है जुडा,एेसा ही ग्यान दिए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।।
जय जयकार करो।।

                      ...... अर्चना सिंह जया
जन्माष्टमी के सुअवसर पर आप लोगों को हार्दिक शुभ कामनाएँ।



Wednesday, August 17, 2016

मित्रता (कविता )

                 
पावन है यह रिश्ता मानो
 महत्वत्ता जो इसकी पहचानो।
लहू के रंग से बढ़कर जानो
मित्रता धन अनमोल है मानो।
बीज मित्रता का तुम बोकर,
भूल न जाना प्रिय सहचर।
प्रतिपल अपने स्नेह से सींचना
बेल वृद्धि हो इसकी निरंतर।
मित्रता का पौधा पनपकर
छाया देता यह प्रतिपल।
रेशम की डोर सी कच्ची
शाख है होती इस तरुवर की।
प्रेम, सहयोग,सहनशक्ति से
सींचना ये लता, जीवन उपवन की।
दर्पण सा होता मित्रता का आईना
मित्र हीे हरते पीर मन की।
अपना अक्स नज़र है आता
हमारी पहचान जब होती इनसे।
मित्र बिन जीवन लगता सूना
हरियाली तन-मन की इनसे।
मित्रता सदा उसका ही पनपता
हुकूमत करने की जो न सोचता।
प्रेम की डोर में सदा पिरोकर
रखता सहजता से गले लगाकर।
अच्छी सौबत में सदा ही रहना
ऊॅंच-नीच ना मन में रखना।
कुुसंगति से सदा ही बचना,
चयन मित्र की परख कर करना।
सुख-दुःख का भागीदार है बनना
राम -सुग्रीव ,जैसे कृष्ण संग थे सुदामा।
मित्रता का उचित संदेश देकर
बुद्धिविवेक का परिचय यूँ ही देना।
मित्रता हो सूर्य चॉंद सी पक्की
प्रकाश-शीतलता देकर अपनी।
मंद न होने दे, खुशियॉं जीवन की
वट-सा विशाल हो मित्रता अपनी।
           
                                       ...................अर्चना सिंह जया

Sunday, August 14, 2016

युवा तुम्हें पुकारता है आवाम ( कविता )



युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
ध्वज का हमेशा रखा जिसने मान।
कर्मभूमि समझ देश को वे वीर
सदा देते रहे जो अपना योगदान।
       युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
इन सपूतों को नित करो सलाम
स्वयं के मुख न करते गुणगान।
सीखो इनसे तुम,कैसी हो देशभक्ति?
शहीद हुए कई ,हमारे नौजवान।
       युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
मॉं के लाल भगत,बोस भी थे हुए
औ’ निरंजन,फतेह,राणा जो शहीद हुए।
लहू को न यूॅं ,तुम होने देना पानी
मॉं के कोख का, यूॅं ही रखना मान।
       युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
बुलंद आवाज कर क्या साबित हो करते?
माना अभिव्यक्ति की है मिली आजा़दी,
थी देशभक्ति की चाहत उनकी भी
आजा़दी का सार समझ करो काम।
        युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
दिग्भ्रमित न हो तुम, कुछ तो समझो
कैसा लाल अब तुम्हें है बनना ?
सपूत कहलाने का दम सदैव भरना,
नवपीढ़ी गर्व से करे तुम्हें सलाम।
      युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
देशद्रोही न कहलाने का भरना दम
आवाज़ को न देना नारों का रंग,
केसरिया ,हरा व सफेद सा रहे दामन
एक ही स्वर बिखेरना सुबह -शाम।
       युवा तुम्हें पुकारता है आवाम
अनेकता में एकता दर्शाकर ,
वीरभूमि को गले लगाकर।
सो गए जहॉं कई वीर तमाम,
ऐसे देश का करना सीखो सम्मान।
       युवा तुम्हें पुकारता है अवाम
       युवा तुम्हें पुकारता है आवाम ।।

                                                        ............  अर्चना सिंह‘जया’      
यह कविता देश  के वीरों  को  नमन......... 
                 आज के पेज 11 मंथन पृष्ट , राष्ट्रीय सहारा पेपर  में  प्रकाशित हुई है जो दिल्ली ,कानपुर ,लखनऊ ,पटना ,वाराणसी ,गोरखपुर और देहरादून से निकलती  है।                           

Wednesday, August 3, 2016

अभयदान (कविता )



 मृत्यु के बाद ,शरीर को कुछ ज्ञात कहॉं ?
 मरण पश्चात् सब है खाक यहॉं।
 नूतन शरीर प्राप्त कर जन्म है लेना
 फिर व्यर्थ है अपने पलकों को भिंगोना  ।
 कर सदुपयोग शरीर के हर अंग का
 औरों को अभयदान तुझे है अब देना ।
 मानवता का फर्ज है निभाना यहॉं,
 सुविचार व कर्त्तव्य से बना ये जहॉं।
 स्वयं को जीवित पा सकता औरों में ,
 जो कठिन संकल्प ले अग्रसर हो।
 नेत्रहीन के जीवन को रौशनकर,
 कुदरत की सुंदरता को है दिखाना ।
 पलकों तले पलते स्वप्न को
 'नेत्रदान' कर साकार है बनाना ।
 धड़कन ही है जो जिन्दा होने का
 पल-पल एहसास कराता है
 जो तू मृत्यु के करीब है तो क्या ?
 'ह्रदयदान' से दिलों में जीवित रह सकता है।
 जीवन को भयभीत बनाता है
 कर्करोग सा भयंकर महाकाल।
 भरना है औरों के जीवन में हरियाली
 'रक्त्दान' से मानव को मिल जाए खुशहाली ।
 औरों को सुख देकर हे मानव
 परमसुख का आभास है होता।
 'गुर्दादान' कर शरीर रुपी मशीन को,
 स्वस्थ व गतिशील सूत्र में पिरोता।
 'गौदान' को माना गया है उत्तम
 पर मानव का कर्ज उतार सर्वप्रथम।
 अंगदान देकर औरों को तू अब
 अभयदान का कार्य कर सर्वोत्तम।
                     
                                                    ..........अर्चना सिंह जया




Monday, August 1, 2016

राजस्थान की कहानी ( कविता )



सुनो सुनाता हूॅु मैं, राजस्थान की अमर कहानी,
राजाओं ने देश की खातिर दे दी अपनी कुर्बानी ।
नर-नारी के ऑंखों में थी, अलमस्त रवानी,
वीरांगनाएॅं भी कम न थीं, नन्हें वीर और थे सेनानी।
जहॉं स्त्रियों ने दिखाया जौहर और व्रत करना सीखा,
तिलक लगा कर पुरुषों को युद्ध भूमि में भेजा।
ऊॅटों की टोली है चलती काफिला ले कर संग ,
जोधपुर, जैसलमेर,बीकानेर ,जयपुर जैेसे कई समेटे रंग।
उगता सूरज , ढ़लती शाम रेत पर बिखेरे सुनहरे रंग,
पुश्कर के मेले में देख ठुमकती कठपुतली,
दिल में कितने राज छुपाए, ऑंखों से ही कह चली।
ढोल मजीरे बाजे-गाजे जैसे सजी चली हो पालकी ,
नई नवेली दुल्हन के हाथों, तिलक सजी थाल की।
केसरिया, हरा, पीला, नीला ,गुलाबी  चुनरी के रंग
माथे से कंधे पर लहराती, गाती पवन के संग-संग ।
राजस्थान की शोभा देखो, मन को है लुभाती
जीवन खुशियों से हरपल है, भर-भर जाती ।                

                                                            ............ अर्चना सिंह जया