Sunday, December 31, 2017

भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता )

भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता ):                      गुजरे कल को कर शीश नमन, मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।          वसंत के आगमन से पिहु बोल उठा,          फिर स...

Monday, December 18, 2017

Kya Kahta Hai India.!! Great Show


https://www.youtube.com/watch?v=GRRcvmFKzXc
https://www.youtube.com/watch?v=GRRcvmFKzXc

I witnessed and enjoyed an enthusiastic show..on 15th Dec..!!
"Kya Kahtaa Hai India" on Zee News

Saturday, December 9, 2017

अपना उल्लू सीधा करते

अपना उल्लू सीधा करते
देश के नेता ही,हमें हैं छलते।
घूम गली-गली नेतागण
करते दिन रात प्रचार जहाॅं।
दिन में भी सपने दिखलाते 
ठग का करते व्यापार वहाॅं।
बेचारी जनता समझ नहीं पाती
किस बात को सच वो समझे ?
किस बात को चाल यहाॅं ?
किस्सा कुर्सी का मन में लिए
नेता बने बहेलिया यहाॅं।
जनता की भावनाओं से 
नित करते खिलवाड़ यहाॅं।
मर्म समझ आती नहीं इनको
राह बदलना, वचन तोड़ना
भाषण देकर भ्रमित है करना।
धर्म-जाति के नाम पर
खेला करते हैं सत्ता तंत्र यहाॅं।
सुरक्षा, शिक्षा ,बेरोजगारी
कहाॅं समझते वे अपनी जिम्मेदारी?
रोटी,कपड़ा और मकान बस
इतनी ही चाहत है हमारी मजबूरी।
लुभावने भाषण हमें सुनाकर
दिग्भ्रमित करने की कोशिश करते,
रंगा सियार बन चुनाव दंगल में
अपना उल्लू सीधा करते। 
                 ...................अर्चना सिंह जया

Monday, November 20, 2017

बेटी का जन्म ( कविता )


बेटी का जन्म ( कविता )

  
न जाने मुझे ये कैसा भ्रम हुआ ?
गॉंव घरों में बॅंटते देख लड्डू
मैंने पूछा,‘आज कैसा शगुन हुआ?’
हॉं,‘आज एक बेटी का जन्म हुआ।’
चलो देर से ही सही,नया पहल हुआ।
बेटी बचाने की जागरुकता तो आई,
मानवता की सोच, कुछ तो बदल पाई।
माता पिता के दिलों में, जश्न  दीप
चहुदिशा  करने लगे प्रदीप्त ।
ये जानकर मन को सुकून हुआ,
बेटियों के सपने भी अब सॅंवरने लगे।
रियो ओलंपिक का प्रभाव देखो हुआ.
सिंधु, साक्षी व दीपा की चाह दिलों में हुई।
बेटियों को मिला सम्मान अपने ही घरों में
और देश विदेश की देखो शोभा हुई।
पुत्री भी कर सकती, वंश का नाम रौशन
जो परिचय दे. वो महिला सशक्तिकरण।
अवनी, भावना व मोहना ने अंतरिक्ष तक
देश के ध्वज को दिया सम्मान,
पिता के दिलों में गर्व ने लिया स्थान,
‘मानुषी ’ जैसी पुत्री ने बढ़ाया मान ।
देश की बालाओं को देकर हाथ
आओ दिखाएॅं उन्हें पाठशाला का मार्ग ।
बेटी को बचाना ही मात्र नहीं है उद्देश्य,
शिक्षित कर उन्हें बनाना है और सशक्त।
पुत्री के जन्म पर भी होंगे नृत्य-संगीत
जनसंचार में लहरा देंगे यह नव संदेश।

                              ............  अर्चना सिंह ‘जया’

Tuesday, November 14, 2017

बाल दिवस [ कविता ]


बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं 
बच्चों के संग बच्चे बनकर,
अपना खोया बचपन पाएॅं।
टाॅफी ,गुब्बारे ,पतंग संग
बीते पल को वापस लाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅ मनाएॅं।
बच्चे ही हैं राष्ट् निर्माता
आओ मिलकर भविष्य सवारें।
14 नवम्बर को ही मात्र नहीं,
हरदिन  मुस्कानों को सजाएॅं।
बच्चों संग अपने गम भुलाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं।
कागज़ की कश्ती बनाकर
आओ औंधी छतरी में तैराएॅं।
बच्चों के हाथों सौंप कल को,
' नेहरु ' के सपने साकार बनाएॅं।
बाल दिवस कुछ यूॅं मनाएॅं
बच्चों के संग बच्चे बनकर,
अपना खोया बचपन पाएॅं।
     
                    ................ अर्चना सिंह जया




Monday, November 6, 2017

मतदान से पूर्व करना विचार. { कविता }

मतदान से पूर्व करना विचार [ कविता ]


चलो बनाए नई सरकार
ज्ञान का जलाएॅं ,फिर मशाल।
अशिक्षा, गरीबी और भ्रष्टाचार
दूर करने पर जो करे विचार।

स्त्री सुरक्षा व बेरोजगारी
प्राथमिकता अब है हमारी।
जन-जन का हो सके कल्याण
नेता चुने कर उचित मतदान।

सत्तर वर्षों का लगा अनुमान
क्या उचित करते आए मतदान ?
सोचा शत प्रतिशत होगा उद्धार
पर स्वप्न,जन का न हुआ साकार।

जागो उठो,वक्त से पूर्व करो विचार 
व्यर्थ न करना निज अधिकार।
जो हो वचन व कर्म का सच्चा
ऐसा चुनाव हमें करना है इस बार।

वसुधा को जो कुटुंब बना सके
बहुमत से जीते वो सरकार।
गतवर्षों के गतिविधि को देख
मतदान से पूर्व करना विचार।

                          ..................अर्चना सिंह जया

Thursday, November 2, 2017

ANTARAA



Hindi Book Free available in Women Stories Essays Book category. Author Archana Singh has written Antaraa part 1,2 &3 in Hindi for free download and read online only on Matrubharti web and Mobile  App.

www.matrubharti.com
ANTARAA  part 1,2 &3

Thursday, October 26, 2017

चलो सूर्योपासना कर लें


         
चलो सूर्योपासना कर लें,
छठी मईया की आराधना कर लें।
अनुपम लोकपर्व फिर मना कर,
कार्तिक शुक्ल षष्ठी का व्रत कर,
लोक आस्था को जागृत कर लें।
चलो सूर्योपासना कर लें,
छठी मईया की आराधना कर लें।
  सूर्यास्त व सूर्योदय के पल हम,
  जल अर्पण कर शीश झुकाएॅं,
  सुख-समृद्धि,मनोवांछित फल पाएॅं,
  घर से लेकर घाट जब जाएॅं,
  भक्तिगीत समर्पित कर आएॅं।
  चलो सूर्योपासना कर लें,
  छठी मईया की आराधना कर लें।
निर्जला  व्रत कठिन है करना
खीर ग्रहण कर मनाएॅं ‘खरना’।
कद्दू-चावल प्रसाद ग्रहण कर,
व्रत आरंभ करते श्रद्धालु जन,
पावन पर्व का संकल्प ले कर।
चलो सूर्योपासना कर लें,
छठी मईया की आराधना कर लें।
    डाल दीप,फल,फूलों से सजाकर,
    संध्या अर्घ्य  व उषा अर्घ्य अर्पित कर,
    चार दिवसीय यह पर्व मनाकर ,
    निष्ठा-श्रद्धा से जो कर लो इसको
    घाट दीपावली-सा सज जाता फिर तो।
    चलो सूर्योपासना कर लें,
    छठी मईया की आराधना कर लें।

                            अर्चना सिंह जया

Saturday, October 21, 2017

दिवाली [ कविता ]

   
दिवाली की रात है आई,
खुशियों से दामन भरने /
अज्ञानता के तम को दूर भगा,
ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित करने।
पटाखों की धुॅंध से न होने देना,
सच्चाई की राह को बोझिल /
दूसरे के जीवन को कर रौशन
देखो कैसे ? लौ मंद-मंद मुस्काती ,
मानव तुम भी सीखो इनसे कुछ
हर वर्ष दिवाली, ईद क्या कहने आती ?
मिल जुलकर खुशी मनाने से ही
वसुधा में प्रेम की हरियाली आती।

                        ------- अर्चना सिंह जया


Monday, October 2, 2017

भावांजलि: हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता )

भावांजलि: हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता ):   हाड़ मॉंस का था वो इंसान , रौशन जिसके कर्म से है जहान। प्रतिभा - निष्ठा कर देश के नाम सुदृढ़ राष्ट् बनाने का थ...

Wednesday, September 6, 2017

हिन्दी हैं हम (कविता )


देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान,
हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान। 
बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार,
घर द्वार से बाहर भी कायम करने दो अधिकार।

कोकिला-सी मधुर है, मिश्री-सी हिन्दी बोली,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सबकी हमजोली।
भिन्नता में भी है, यह एकता दर्शाती,
लाखों करोंड़ों भारतीय दिलों में है,जगह बनाती। 

दोहा, कविता, कहानी, उपन्यास, छंद,
हिन्दी भाषी कर लो अपनी आवाज बुलंद। 
स्वर-व्यंजन की सुंदर यह वर्णशाला,
सुर संगम-सी मनोरम होती वर्णमाला। 

निराला, दिनकर, गुप्त, पंत, सुमन,
जिनसे महका है, हिन्दी का शोभित चमन। 
आओ तुम करो समर्पित अपना तन मन, 
सींचो बगिया, चहक उठे हिन्दी से अपना वतन। 

                                                                                            ----- अर्चना सिंह जया
                                                           [ 12 सितम्बर 2009 राष्ट्रीय सहारा ‘जेन-एक्स’ में प्रकाशित ]

Monday, September 4, 2017

Happy Teachers' Day. [POEM]


नमन है श्रद्धा सुमन (कविता)


सतकर्म कर जीवन किया है जिसने समर्पित,
उन्हीं के मार्ग पर चल, उन्हें करना है गर्वित।
माता -पिता व गुरुजनों का मान बढ़ाया जिसने,
अब कर जोड़, शीश नमन उन्हें करना है हमने।
वतन को अब रहेगा सदैव उन पर अभिमान ,
बच्चे ही नहीं बड़े भी उन्हें करते हैं सलाम।
‘भारत रत्न 'भी कहलाए श्री अब्दुल कलाम,
श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे, मानव उम्र तमाम ।
वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, मार्गदर्शक भी कहलाए वे,
भारतीय होने के सभी फर्ज शिद्द्त से निभाए वे।
‘मिशाइल मैन ' के खिताब से भी नवाजा गया,
व्यक्तित्व जिसका वतन का दामन महका गया ।
जमीं का तारा आसमॉ का सितारा हो गया ।
मानवता का पाठ पढ़ाकर शून्य में विलीन हो गया ।
उदारता से परिपूर्ण था, हृदय जिसका सदा,
सर्वोच्च शिखर प्राप्त हो ऐसा व्रत लिया ।
लगन औ मेहनत के मिशाल बने स्वयं वे,
जो न सोने दे, ऐसा स्वप्न सदैव देखा किए ।
सुनहरे सफर में ‘अग्नि  ,‘पृृथ्वी  और ‘आकाश  साकार किया,
‘सुपर पावर  राष्ट् हो, सोच पूर्ण योगदान दिया ।
सादा जीवन उच्च विचार का आभूषण धारण कर,
सम्पूर्ण जीवन देश के नाम न्योछावर किया ।
युवाजन अब चलो उठो, प्रज्ज्वलित करो मशाल
स्वर्णिम भारत का मन में अब कर लो विचार ।
जो समााज का स्वेच्छा से करते हैं उद्धार,
ऐसे शिक्षकों को है हमारा  बरहम्  बार प्रणाम ।
                                                                
  [  श्री ए पी जे अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि]
                                                                                          ---------- अर्चना सिंह ‘जया’

Monday, August 14, 2017

जय जय नन्दलाल कविता

जय जय नन्दलाल

लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का
विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप  का।
वासुदेव व देवकी को दिए, कंस ने कारावास, 
जन्माष्टमी के दिन ही जन्मे बाल गोपाल।
द्वापर में जन्में, देवकी के गर्भ से,
धन्य हुई भूमि, देवों के आशीष से।
कारागार से वासुदेव ले, टोकरी गोपाल की।
चले यमुना पार वे गोकुल धाम को,
नन्द को सौंप आए, अपने ही पूत को।
कंस से दूर किया, देवकी के लाल को,
यशोदा धन्य हुई, पाकर गोपाल को।
वात्सल्य प्रेम का अमृत पान करा,
पालने को झुलाती, मुख को चूम के।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
नन्द -यशोदा के आँगन के पुष्प से,
महका गोकुल वृंदावन नवागन्तुक से।
ओखल पर पाँव रख माखन चुराए लिए,
'माखनचोर'नाम से गोपीजन पुकारते।
नटखट लाल की बालक्रीडा निहारती,
गोपियों की शिकायत, माँ बिसारती।
गोकुल में पूतना और नरकासुर वध से
अचम्भित कर दिया, अपने ही कर्म से।
लाल को अबोध जान, विचलित मन हुआ
मुख में ब्रह्माण्ड देख, माँ को अचरज हुआ।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
यमुना के तट, कदम के डार पर
मधुर तान छेड़, मुरलीधर मन मोहते।
दर्शन मात्र से जीवन हो जाए धन्य,
जो भज मन राधेकृष्ण राधेकृष्ण।
कालिया फन पग धर, कंदुक ले हाथ में
प्रकट हुए श्याम मधुर मुस्कान ले।
सहज जान कर, गोवर्धन उठाए लिए
इंद्र के प्रकोप से, सबको प्राण दान दिए।
अर्जुन संग सुभद्रा को ब्याह कर
भ्राता का फर्ज भी, निभाए मुस्कुरा कर।
शंख, चक्र, गदा, पद्म ,पिताम्बर
व वनमाला से कन्हैया शोभित हो,
रूक्मिणी, सत्यभामा संग ब्याह किए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
मंगल गीत गा, जय जयकार करो ।
कृष्ण की दिवानी भई, मीरा प्रेमरंग के
गोपियों संग स्वांग रचे, राधा प्रेम रंग के।
कर्म को धर्म मान सबका उपकार किए
द्रौपदी का चीर बढ़ा, रिण उतार दिए।
मुट्ठी भर चावल ले, मित्रता का मान किए
सर्वस्व दान दे, सुदामा को तार दिए ।
घर्म, करूणा, त्याग, ज्ञान पाठ पढ़ा चले
प्रेम मार्ग समस्त जगत को दर्शा चले।
जीवन का सार वे अर्जुन को बता दिए,
कर्म से ही धर्म है जुडा, ऐसा ही ज्ञान दिए।
लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो,
 जन्माष्टमी को मंगलगीत गा, जय जयकार करो ।


                      ...... अर्चना सिंह जया
जन्माष्टमी के सुअवसर पर आप लोगों को हार्दिक शुभ कामनाएँ।

Friday, July 28, 2017

http://matrubharti.com/book/read/10385/
यहाँ पर 100 शब्दों में लिखी , मेरी दो कहानियाँ हैं।

अर्चना सिंह 'जया'

Wednesday, July 19, 2017



http://matrubharti.com/book/read/10385/
Here some Love Stories are in 100 words. 
Archana Singh jaya'

Monday, July 17, 2017

जी ले इस पल [ कविता ]

         
आज अभी जी ले चल,
समय कहता हुआ निकल गया।
चलना है तो संग मेरे चल,
वरना मैं नहीं रुकूॅंगा इक पल।
वक्त की पुकार सुनती थी पल-पल।
चाहत हुई उसे थामने की ,
रेत-सा फिसल गया आज-कल।
न थाम पाई हाथ उसका
आज, न जाने कैसे यूॅं निकल गया ?
वक्त सा बेवफा हुआ न कोई,
चार कदम आगे रहा सदा यूॅं ही।
कोशिश कर रही थी चलने की,
तभी लम्हा भागता आया वहाॅं।
‘‘मैं हॅूं अभी यहीं, जो जी ले इस पल
न ठहर पाऊॅंगा मैं यहाॅं दो पल
आज अभी मैं हूॅं संग तेरे
कल रहूॅगा मैं न जाने किधर ?’’
मेरी चाहत तुम्हें सताएगी,
पछताता फिरेगा इधर-उधर।
जो गुजरा मैं आज,न लौटूूॅंगा कल।
कल, आज और कल के दल-दल से
तू हो सके तो निकल चल।
अरमानों को न यूॅं मसल,
आज अभी जी ले चल।        
               
                                                  ........ अर्चना सिंह जया


Wednesday, July 5, 2017

मेरा अक्स [ कविता ]


मेरा अक्स एक दिन
लगा था,मुझे देखने।
देख मेरी आॅंखों में
फिर लगा वो कहनेे,
‘ मेरे जैसा है तू।’
मैं मंद-मंद हंसी और
बोली,‘ तू तो
मेरा प्रतिबिम्ब है।’
तू मुझ-सा है,
मैं तूझ-सा नहीं।’
फिर क्या था ?
अक्स इठलाया
आॅंखों में चमक लिए
मुझे गर्व से चिढ़ाया।
और लगा कहने,
‘तू तो पीड़ा हिय में छुपा,
नकाब पहने हुए है।
मुख पर हंसी और
मन में भाव दबाए हुए है।’
और लगा कहने
‘मैं तो  हूँ  ही अक्स तेरा
चाह कर भी न हँस सका
और न दे सका स्वप्न  सुनहरा।’
किंतु मैं नित
देख सकता हॅूं वो दर्द गहरा
अब बता कि
तू मुझमें है कि मैं तुझमें हूॅं
क्या रिश्ता नहीं है ?
हम दोनों का गहरा।
गर दर्पण का न होता पहरा
तो जीवन में ,मैं भर देता
खुशियों का रंग गहरा।

                              अर्चना सिंह‘जया’

Sunday, March 12, 2017

होली है


                      होली है  कविता
चलो फिर से
गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है।
पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है।
जीवन को आनंद के रंग में भिंगो ली,
अमिया पर बैठी कोयल है बोली,
‘चलो बंधुजन मिल खेले होली।’
चिप्स, नमकीन, गुझिया, दहीबड़े
दिल को भाते हैं पकवान बड़े।
ढोल, मजीरे मिलकर बजाते हैं
चलो फिर से
फगुआ मिलकर गाते हैं
पौराणिक कथाएॅं गुनगुनाते हैं।
अबीर संग सभी झूमते गाते हैं
‘फागुन का ऋतु सभी को भाता,
गाॅंव-गाॅंव है, देखो फगुआ गाता।’
अंग-अंग अबीर के रंग में डूबा,
तन-मन स्नेह रंग में भींगा।
लाल, नीली, हरी, पीली
सम्पूर्ण धरा रंग-बिरंगी हो - ली।
गिले-सिकवे भूले, सखा-सहेली
सकारात्मकता का प्रचार करती आई, होली।
गुलाल संग बोलो-होली है, होली।

                ............... अर्चना सिंह जया
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

Thursday, March 9, 2017

नारी तू सशक्त है [ कविता ]

               
नारी तू सशक्त है।
बताने की न तो आवश्यकता है
न विचार विमर्श की है गुंजाइश।
निर्बल तो वह स्वयं है,
जो तेरे सबल होने से है भयभीत।
नारी तू सशक्त है
धर्म-अधर्म की क्या कहें?
स्त्री धर्म की बातें ज्ञानी हैं बताते
पुरुष धर्म की चर्चा कहीं,
होती नहीं कभी अभिव्यक्त है।
नारी तू सशक्त है।
देवी को पूजते घरों में,
पर उपेक्षित होती रही फिर भी।
मान प्रतिष्ठा है धरोहर तेरी,
अस्तित्व को मिटाती औरों के लिए
नारी तू सशक्त है /
तू ही शारदा ,तू लक्ष्मी,तू ही काली
धरा पर तुझ-सी नहीं कामिनी।
तेरे से ही सृष्टि होती पूर्ण यहाॅं,
भू तो गर्व करता रहेगा सदा।
नारी तू सशक्त रही
और तू सशक्त है सदा।

                 -------------  अर्चना सिंह जया

' महिला दिवस ' पर सभी नारियों को समर्पित  /







Wednesday, March 1, 2017

सत्ता की चाहत न देखी,हमनें ऐसी [ कविता ]



चुनावी रंग अभी सब पर है छाया
ये कैसी होली खेल रहे हो भाया ?
धैर्य तो रखो जरा, माना है फागुन आया
रंगों की जगह कीचड़ फेंक रहे हो,
यह कैसे अस्तित्व का परिचय दे रहे हो ?
धर्म,जाति,मंदिर मस्जिद का खेल तो खेला
श्मशान को भी बना डाला चुनावी झमेला।
जिस दिन उतरेगा ये बुखार तुम्हारा
छट जायेगा उस पल घना अंधेरा।
न रहेगा बाॅंस, न बजेगी बाॅंसुरी
चुनाव के पश्चात् जब उतरेगी पगड़ी।
बीत गए माघ दिन उन्नतीस है बाकी
बंद हो जाएगी इनकी ताॅंका-झाॅंकी।
चौखट से चैराहे तक ले आए खैरात पेटी
सत्ता की चाहत न देखी, हमनें ऐसी।

                  ...............अर्चना सिंह जया
                           इन्दिरापुरम, गाज़ियाबाद
In today's Rashtriya Sahara paper, page 9.



Saturday, February 25, 2017

फजूल की बातें

दिन-प्रतिदिन नेतागण आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला और भी प्रबल करते जा रहे हैं। अगर गंभीरता से विचार करें तो ये स्वयं के व्यक्तित्व का ही परिचय देते नजर आ रहे हैं। अब वक्त परिणाम का नजदीक आता देख ये बेकाबू हो रहे हैं व अपने दायरे को लाॅंघ रहे हैं। कुरेद-कुरेद कर बेतुके मुद्दे खड़े करने की कोशिश में दिग्भ्रमित हो रहे हैं। अब यू पी चुनाव को ही देखिए, कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर, कभी आरक्षण-निर्दलीय वर्ग के नाम पर और हद तो तब हो गई जब कब्रिस्तान - श्मशान तक को भी नहीं छोड़ा। अरे भाई, मुर्दों बेचारों को तो रहने देते। क्या आप स्वयं को इतने कमजोर समझने लगे कि उनके सहारे की आवश्यकता आन पड़ी। देशवासियों अपने जीवित होने का एहसास कराओ और मुद््दों से भ्रमित करने वालों को आईना दिखाओ। हमें रोजगार, शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा व न्याय व्यवस्था जैसे मुद्दों से संबंधित बात करनी है, फजूल की बातें नेतागण अपनी जेब में ही रखें तो लोकतंत्र के लिए उचित होगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र के विषय में विचार करें, अगर इनके रिर्पोट कार्ड की बात करें तो न जाने कितनी जगह लाल स्याही से रेखांकित करने की आवश्यकता होगी जिसे देख भारत माता को लज्जा आएगी।

                                                                                    ..............  अर्चना सिंह जया
In Rashtriya Sahara Paper, page 9.

                                                                                         


Tuesday, February 21, 2017

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर व्यंग्य

                         आखिर किसका विकास...?
मैं वह उत्तर प्रदेश हूॅं भाई। जहाॅं वर्षों से परम्परा कायम है ‘सबका साथ,सबका विकास’ न हमने होने दिया है न होने देंगे। क्यों बाहर के लोग बदलने को तुले हैं जब जनता जनार्दन इसी में खुश हैं। ऐसा मुझे लगता है शायद नाखुश भी हों। पर हमें क्या लेना-देना जन-जन की खुशी से। हम पूर्वजों की परम्परा यूॅं ही नहीं खोने देंगे,सबका यानि परिवार के सदस्यों पिता, बेटी ,बहुओं, बेटों, चाचा, भतीजा सभी का विकास करेंगे। देश से पूर्व शुरुआत घर से ही तो करेंगे,अंग्रेजी में भी तो ऐसी ही कहावत कहते हैं न.....। देश की फिर सोचेंगे जल्दी किस बात की ? पहले लैपटाॅप, कूकर, वाईफाई.....देकर मन तो बदल दें, सत्ता में आकर बिजली, पानी, कारखानों की सोचेंगे। पंजाब, बिहार, तमिलनाडु भी हमारे ही पथ पर अग्रसर हो रहे हैं। इलाहाबाद से जन्मी इस परम्परा से हाथ मिला मजबूत बनाएॅंगे। एक एक कदम परिवार के हित में उठाएॅंगे। आने वाली पीढ़ी जिसे याद रखे ऐसा उत्तर प्रदेश बनाएॅंगे। भाइ्रयों व बहनो अब तो आप के सहयोग की आशा है कि आप कैसा राज्य बनाएॅंगे ?

                                                                                               अर्चना सिंह जया
In Rashtriya Sahara Paper, page 9.
                                                 
       

Sunday, February 19, 2017

जन-जन की आॅंखों में धूल [ कविता ]


वचनों का मायाजाल क्यों बुन रहे हो ?
जन-जन की आॅंखों में धूल झोंक रहे हो।
स्वयं के हित से ऊपर उठकर,
शहीदों से कुछ सीखते तुम जो
परिवार हित से सर्वप्रथम, वे
राष्ट् हित की बात थे करते।
कभी भी वे नकारात्मकता का
प्रचार-प्रसार नहीं थे करते।
कैसे नेता हो तुम राष्ट् के ?
देश के नागरिक हो सबसे पहले ।
वचनों का मायाजाल क्यों बुन रहे हो ?
जन-जन की आॅंखों में धूल झोंक रहे हो।
गर कार्यकाल का सदुपयोग जो करते
वोट की भीख न यूॅं माॅंगते फिरते।
विपक्ष पर अॅंगुली नित उठाकर
समय व्यर्थ क्यों ? यूॅं कर रहे हो /
जनता को मूर्ख मानने की नासमझी
अव्यावहारिक औ असंगत बातें करके,
गुमराह करने की पूर्ण कोशिश
जाने क्यो नेतागण ऐसा कर रहे हो ?
जन-जन की आॅंखों में धूल झोंक रहे हो।
एहसान हम पर ही कर दिया है तुमने
जाने-अनजाने में ही सही,
जन-जन की सोई चेतना जगाकर।
धन्यवाद है करते, हम तुम्हारा।
जन-गण-मन में संवेदना है जागी
उचित-अनुचित का चयन कर लिया।
सभ्य-असभ्य की पहचान हमें है,
पथ से भटकाने की भूल कर रहे हो,
जन-जन की आॅंखों में क्यों धूल झोंक रहे हो ?

                            ...........अर्चना सिंह जया
  In today's Rashtriya Sahara Paper.                                       

Thursday, February 16, 2017

देश बदलने में अपना योगदान करें [ कविता ]

         

देश के संचालक का हम चुनाव करें
भारतवासियों चलों फिर से मतदान करें,
अधिकारों को यूॅं न बरबाद होने देना
आने वाले कल पर फिर से विचार करें।
          देश बदलने में अपना योगदान करें,
गरीबी, बेरोजगारी, का काम तमाम कर
सर्वशिक्षा का आगे आकर श्रमदान करें। 
जनता जनार्दन का एक स्वर हो सके
दिग्भ्रमित लोगों को नई दिशा प्रदान करें ।
           देश बदलने में अपना योगदान करें ,
भ्रष्टाचार व कुपोषण का सर्वनाश कर
एक से दो, दो से चार हाथों को थाम चलें।
एक मत हो ,एक राग हो राष्टृ के हित में
समानता और परिवर्त्तन लाने का आह्वान करें ।
            देश बदलने में अपना योगदान करें 
आरक्षण के नाम पर वोट की भीख न देना
स्वयं की मेहनत व मनोबल पर गर्व करना।
अपने दायित्वों को समझ कर जो आगे आए
पूर्णबहुमत का समर्थन है उसे ही देना।
             देश बदलने में अपना योगदान करें , 
           उज्ज्वल भविष्य का चलो नव निर्माण करें।
                               ..................अर्चना सिंह जया
Published in today's Rashtriya Sahara Paper.
                                         

Tuesday, February 14, 2017

मतदान से पूर्व करना विचार [ कविता ]


चलो बनाए नई सरकार
ज्ञान का जलाएॅं ,फिर मशाल।
अशिक्षा, गरीबी और भ्रष्टाचार
दूर करने पर जो करे विचार।

स्त्री सुरक्षा व बेरोजगारी
प्राथमिकता अब है हमारी।
जन-जन का हो सके कल्याण
नेता चुने कर उचित मतदान।

सत्तर वर्षों का लगा अनुमान
क्या उचित करते आए मतदान ?
सोचा शत प्रतिशत होगा उद्धार
पर स्वप्न,जन का न हुआ साकार।

जागो उठो,वक्त से पूर्व करो विचार 
व्यर्थ न करना निज अधिकार।
जो हो वचन व कर्म का सच्चा
ऐसा चुनाव हमें करना है इस बार।

वसुधा को जो कुटुंब बना सके
बहुमत से जीते वो सरकार।
गतवर्षों के गतिविधि को देख
मतदान से पूर्व करना विचार।

                          ..................अर्चना सिंह जया
Published in Rashtriya Sahara Paper on 14 February.

Friday, February 10, 2017

चतुर वानर [ बाल कविता ]


चतुर वानर की सुनो कहानी,
वन में मित्रों संग,
करता था मनमानी।
बंदरिया संग घूमा करता,
कच्चे-पक्के फल खाता था।
पेड़-पेड़ पर धूम मचाता,
प्यास लगती तो नदी तक जाता।
पानी में अपना मुख देख वो,
गर्व से खुश हो गुलट्टिया खाता।
तभी मगरमच्छ आया निकट,
देख उसे घबड़ाया वानर।
मगर ने कहा,‘‘न डरो तुम मुझसे
आओ तुमको सैर कराऊॅं,
इस तट से उस तट ले जाऊॅं।
कोई मोल न लूॅंगा तुमसे,
तुम तो हो प्रिय मेरे साॅंचे।’’
वानर को यह कुछ-कुछ मन भाया,
पर बंदरिया ने भर मन समझाया।
सैर करने का मन बनाकर,
झट जा बैठा, मगर के पीठ पर
लगा घूमने सरिता के मध्य पर।
तभी मगर मंद-मंद मुसकाया,
कलेजे को खाने की इच्छा जताया,
‘कल से वो भूखी है भाई
जिससे मैंने ब्याह रचायी
उसकी इच्छा करनी है पूरी
तुम्हारा कलेजा लेना है जरुरी।’
सुन वानर को आया चक्कर,
घनचक्कर से कैसे निकले बचकर ?
अचंभित होकर वो लगा बोलने,
ओह! प्रिय मित्र पहले कहते भाई।
मैं तो कलेजा रख आया वट पर,
चलो वापस फिर उस तट पर।
मैं तुम्हें कलेजा भेंट करुॅंगा,
न कुछ सोचा, न कुछ विचारा
मगर ने झट दिशा ही बदला।
ले आया वानर को तट पर,
और कहा,‘ मित्र करना जरा झटपट।’
वानर को सूझी चतुराई,
झट जा बैठा वट के ऊपर।
दाॅंत दिखाकर मगर को रिझाया,
और कहा,‘अब जाओ भाई
तुम मेरे होते कौन हो ?
तेरा-मेरा क्या रिश्ता भाई ?
वानर ने अपनी जान बचाई,
मगर की न चली कोई चतुराई।     
                      ................... अर्चना सिंह जया


Tuesday, February 7, 2017

कछुआ और खरगोश [बाल कविता ]


चपल खरगोश वन में दौड़ता भागता,
कछुए को रह-रह छेड़ा करता।
दोनों खेल खेला करते ,
कभी उत्तर तो कभी दक्षिण भागते।
एक दिन होड़ लग गई दोनों में,
दौड़ प्रतियोगिता ठन गई पल में।
मीलों दूर पीपल को माना गंतव्य,
सूर्य उदय से हुआ खेल प्रारंभ।
कछुआ धीमी गति से बढ़ता,
खरगोश उछल-उछल कर चलता।
खरहे की उत्सुकता उसे तीव्र बनाती,
कछुआ बेचारा धैर्य न खोता।
मंद गति से आगे ही बढ़ता,
पलभर भी विश्राम न करता।
खरहे को सूझी होशियारी,
सोचा विश्राम जरा कर लूॅं भाई।
अभी तो मंजिल दूर कहीं है,
कछुआ की गति अति धीमी है।
वृक्ष तले विश्राम मैं कर लूॅं,
पलभर में ही गंतव्य को पा लॅूं। 
अति विश्वास होती नहीं अच्छी,
खरगोश की मति हुई कुछ कच्ची।
कछुआ को तनिक आराम न भाया,
धीमी गति से ही मंजिल को पाया। 
खरगोश को ठंडी छाॅंव था भाया,
‘आराम हराम होता है’ काक ने समझाया।
स्वर काक के सुनकर जागा,
सरपट वो मंजिल को भागा।
देख कछुए को हुआ अचंभित,
गंतव्य पर पहुॅंचा, बिना विलंब के।
खरगोश का घमंड था टूटा,
कछुए ने घैर्य से रेस था जीता।
अधीर न होना तुम पलभर में,
धैर्य को रखना सदा जीवन में।
                                      अर्चना सिंह जया

published today in http://nanakipitari.blogspot.in

Friday, February 3, 2017

ये हैं नेता कल के


किसे चुने हम अपना नेता?
जो बदल सके है देश,
कोई कंश, कोई शकुनी
कोई बनाए है धृतराष्ट् का वेश।
मत का दंगल देखो है छिड़ा
बेटा भी न रहा बाप का।
स्वार्थ के रंग में डूब गए सब
बदला है देखो रंग लहू का।
विरोधी दलों पर कटुवचनों का
तनिक न थकते, करते प्रहार।
लगता नहीं इसी देश के हैं,
सत्ता के नाम,पी गए संस्कार।
ऊॅंट न जाने किस करवट बैठे?
गठबंधन न जाने कब टूटे?
डाकू जन स्वतंत्र यहाॅं हैं
सुभाष, बोस से नेता कहाॅं हैं?
हाथ जोड,साइकिल को थाम़
नेता हैं अभिनेता से आगे।
सत्ता की चाह में ‘बहरुपिया’बन
निकल पड़े हैं भीख माॅंगने।
लज्जा नहीं आती है इनको
वोट की तुलना बेटी से करते।
नेता वो है खुद को कहलाते
सत्ता की चाह में कीर्ति गान करते।
लोकतंत्र का लाभ उठाकर
बे फिज़ूल की बातें करतें।
देश का विकास ये क्या करेंगे?
जो बन गए ये नेता हैं कल के।
                      .................अर्चना सिंह जया
3 February, Rashtriya Sahara Paper...page-8, published.






Wednesday, February 1, 2017

अपना उल्लू सीधा करते


अपना उल्लू सीधा करते
देश के नेता ही,हमें हैं छलते।
घूम गली-गली नेतागण
करते दिन रात प्रचार जहाॅं।
दिन में भी सपने दिखलाते 
ठग का करते व्यापार वहाॅं।
बेचारी जनता समझ नहीं पाती
किस बात को सच वो समझे ?
किस बात को चाल यहाॅं ?
किस्सा कुर्सी का मन में लिए
नेता बने बहेलिया यहाॅं।
मोबाइल,लैबटाॅप,कूकर का डाल दाना
बुनते मायाजाल जहाॅ-तहाॅं।
जनता की भावनाओं से 
नित करते खिलवाड़ यहाॅं।
मर्म समझ आती नहीं इनको
राह बदलना, वचन तोड़ना
भाषण देकर भ्रमित है करना।
धर्म-जाति के नाम पर
खेला करते हैं सत्ता तंत्र यहाॅं।
सुरक्षा, शिक्षा ,बेरोजगारी
कहाॅं समझते वे अपनी जिम्मेदारी?
रोटी,कपड़ा और मकान बस
इतनी ही चाहत है हमारी मजबूरी।
लुभावने भाषण हमें सुनाकर
दिग्भ्रमित करने की कोशिश करते,
रंगा सियार बन चुनाव दंगल में
अपना उल्लू सीधा करते। 
                 ...................अर्चना सिंह जया
Today's Rashtriya Sahara,page 9. 
www.rashtriyasahara.com

Friday, January 13, 2017

उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]

 पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता  
 ‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
 कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
 ‘‘खेतों में हरियाली आई,
 पीली सरसों देखो लहराई।
 खरीफ फसल पकने को आयी,
 सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
 नववर्ष का देख हो गया आगमन,
 पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
 पवित्र स्नान कर, देव को नमन
 अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
 चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल।
 लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
 पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
 एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
 अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
 तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
 बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
 पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
 बादलों को चल आएॅं छूकर ।
 रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
 प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
 दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
 त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।    
           
               ------------- अर्चना सिंह‘जया’

Monday, January 2, 2017

नव वर्ष का आगमन ( कविता )

                    
गुजरे कल को कर शीश नमन,
मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।
         वसंत के आगमन से पिहु बोल उठा,
         फिर से महकेगा वसुधा और गगन ,
          मन दर्पण-सा खिल उठेगा सबका,
         नूतन पुष्पों व पल्लव से सजेगा चमन।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
           चारों तरफ सुगंधित मंद पवन हो,
           झुरमुट लताओं में कलरव हो,
           आँगन में गूँजती किलकारी हो,
           युवकों के मन में विश्वास प्रबल हो।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
          रिश्तों में अटूट प्रेम का हो बंधन,
           घरों में पनप उठे महकता उपवन,
           अब समाज में हो जाए नव मंथन,
          वसुंधरा में गूँजे सत्यं, शिवम् ,सुंदरम्।
गुजरे कल को कर शीश नमन,
         नई उम्मीद,नया सवेरा से सजे वतन
         आशाओं को संजोएॅं,निराशा का हो पतन,
         मोमबत्ती  को थामें बढ़े चलें ,क्यों न हम?
         नूतन वर्ष को सुसज्जित कर,दूर करें तम।
  गुजरे कल को कर शीश नमन,
 मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन।                      

                                   अर्चना सिंह‘जया’