Wednesday, December 29, 2021

मैं और मेरी चाय

                 " मैं और मेरी चाय "☕

मैं और मेरी चाय आपस में अक्सर ये बातें करती हैं,

तन्हाई में सवाल, मुझसे पूछा करती है।

मैं नहीं होती तो प्रातः,तू करती किसका इंतज़ार ? 

कोमल हाथों के स्पर्श का प्रतिदिन, मुझे रहता  इंतज़ार।

होंठो से लेती हर सिप में महसूस होता है प्यार ,

सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी रहता, तुम्हारा इंतज़ार। 

मैं सिर्फ चाय नहीं ,हूँ तुम्हारा प्यार, संगी साथी, सहचर, 

तुम्हारे सुख में और दुख में भी नहीं छोड़ती साथ। 

सच ही कह रही हो - डीयर चाय 

बिस्कुट, सैंडविच,आलू पराठे,पकौड़े संग भी 

निभाती आई हो अपना साथ।

गुन गुनी गर्मागर्म भाती हो हर बार,

शीत काल में तुम सा नहीं कोई यार। 

जितनी भी तारीफ करूँ कम लगती हर बार ,

रिश्तों से मिले दर्द अपनों से मिली रुसवाई में भी

कभी भी प्याली ने नहीं छोड़ा साथ।

चाहे ऋतु हो जो कोई भी या हो दिन-रात,

थाम हाथ में महसूस होता,

 जैसे दूर करती हो तन्हाई और हर लेती पीर।

अंतर्मन पुलकित हो उठता और 

आंखों में झलक उठता मधुर प्यार।  

मैं और मेरी चाय प्यारी,हमजोली है मेरे जीवन की।