Wednesday, June 20, 2018

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर..(.कविता)

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता)

 योग को शामिल कर जीवन में
 स्वस्थ शरीर की कामना कर।
 जीने की कला छुपी है इसमें,
 चित प्रसन्न होता है योग कर। 
 घर ,पाठशाला या दफ्तर हो चाहे
 योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
      शिशु, युवा या वृद्ध हो चाहे
      योग ज्ञान दो, हर गॉंव-शहर।
      तन-मन को स्वस्थ रखकर
      बुद्धिविवेक है विस्तृत करना।
      इंद्रियों को बलिष्ठ बनाने को
      योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
विज्ञान के ही मार्ग पर चलकर
योग-साधना अब हमें है करना।
आन्तरिक शक्ति को विकसित करता,
योग की सीढ़ी जो संयम से चढ़ता।
ईश्वर का मार्ग आएगा नज़र,जो
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
     दर्शन, नियम, धर्म से श्रेष्ठ  
     योग रहा सदा हमारे देश।
     आठों अंग जो अपना लो इसके
     सदा रहो स्वस्थ योग के बल पे।
     जोड़ समाधि का समन्वय कर
     योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।

                                                                                          21 june   अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर
                                                                                                    - अर्चना सिंह 'जया' 

Sunday, June 17, 2018

पिता से नाता ( कविता )

पिता का साया सदा है भाता,
हमारी फिक्र से है उनका नाता।
कभी फटकार तो कभी स्नेह,
उनकी अंगुली को थामकर
चलना सीखा, हँसना सीखा।
हमारे मार्गदर्शक रहे सदा ही,
उनकी बगिया की, हम फुलवारी।
महकना सीखा,चहकना सीखा
हमारी फिक्र से है उनका नाता।
दुःख के बादल से परे रख,
उज्ज्वल भविष्य की करें प्रार्थना
माँ अन्नपूर्णा तो पिता ब्रह्मा,
अच्छी  सेहत  उनको देना दाता।
बिना इनके राह नहीं सुहाता,
दोनों ही हैं हमारे विधाता।
हमारी फिक्र से है उनका नाता।
पिता का साथ सदा ही भाता।

                .......अर्चना सिंह जया