दिल्ली दिल वालों की है जनाब, चाहे कोहरे बिछे हों राह
सड़क किनारे टिक्की-चाट,कुल्फी आइसक्रीम लेकर हाथ।
शीतल पवन तन-मन को छूती, सर्दी का कराती है एहसास
बच्चे,जवान, बूढ़े को फिर भी दिल्ली की सर्दी आती रास।
रह-रहकर दिल्ली-सर्दी,शिमला-नैनीताल की याद दिलाती
युवाजन फैशन के वशीभूत जैसे, सर्दी उनको छू कहाँ पाती?
पर, गरीब बेचारे दो वक्त-रोटी के मारे सर्दी उन्हें नहीं सुहाती,
तन ढकने को वस्त्र नहीं, क्षुधा अग्नि भी ठंड से कहाँ बचाती?
दिल्ली की सर्दी में पशु-पक्षी-मानव शीत लहर की मार खाते
गरीब,बेघर,बेचारे दाल रोटी, चादर कंबल को तरसते हैं सारे।
सर्दी अब रहम कर जीव-जन्तु संग मानव भी होगी आभारी।
कोहरे-धुंध में रो रही मजबूर-असहाय-गरीब जनता बेचारी।