मैंने किया क्या ?
सच तो है
आज उम्र के इस पड़ाव पर
पूछा गया है प्रश्न
तुमने किया क्या?
एक घर को छोड़ आई
नए मकान को घर बनाई।
और मैंने किया क्या ?
जो अपने नहीं थे,
उन्हें अपना बना ली।
मान सम्मान दिया,
प्यार, स्नेह भी किया।
पर मैंने किया क्या?
नव बीज भी रोपा स्नेह से
पौधे बनने तक ख्याल रखा।
साँझ सवेरे नित जतन कर
फल पाने का इंतजार किया।
आँधी में भी धैर्य न खोया,
उम्मीद का दीप जलाए रखा।
मुस्कुराकर हर पीर सही,
स्वाभिमान को गठरी में रखा।
और मैंने किया क्या?
बिखरे पल को सहेजती रही,
औरों को सर्वप्रथम है रखा।
कुछ प्रयास तुमने किया,
तो कुछ प्रयास हमने भी किया।
गर तुम आगे सदा रहे तो
हम भी साथ में थे खड़े।
अप्रत्यक्ष रूप में ही सही,
तिनका बन कर ही डटे रहे।
पर मैंने क्या किया ?
सच ही तो है कभी
आगे आकर जताया ही नहीं।
अपने कर्मों को अहमियत,
हमने खुद ही दिया नहीं।
सच ही तो है कि
हमने क्या ही किया?
चादर, पर्दों, दीवारों की धूल
साफ़ तो हमने कर दिया।
पर कभी औरों के मन के
धूल को साफ ना हमने किया ।
सच ही तो है, हे ईश्वर
मैंने कुछ तो नहीं किया।
उम्र जाने किधर गई?
चेहरे पर झुर्रिया आ गई।
आईना जब भी हूँ देखती
अक्स मेरा है पूछता कि
आज तक मैंने क्या किया ?
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