Tuesday, August 20, 2019

कुदरत की पुकार

कुदरत की हाहाकार सुन,मन कुछ विचलित हो चला।
भूल कहाँ हो गई? हमसे,ये प्रश्न मन में है फिर उठा।
वक्त रहते सम्भल जा तू,करुण रुदन है प्रकृति का।
तटिनी के विरह गीत से,छलनी हुआ धरा का कोना।
प्रण ले स्वयं से तू आज,धरोहर को नहीं है वंचना।
विरासत में मिली संपदा को,आगे बढ़ तुम्हें है सहेजना।
अपनी भूल से सीख कर,सदाचार मन में सदा रखना।
जल,थल,वायु प्रदूषण पर नियंत्रण बनाए रखना,
वरना भावी पीढ़ी भटकने को विवश होगी यहाँ वहाँ।
जड़ी बूटी औषधि धरोहर प्रकृति है सहेजे हुए संपदा ,
बुद्धिजीवी संभल जा तू वक्त ने दे अच्छा अवसर यहाँ।
प्रकृति पुकार सुन चल नभ,जल,थल का कर संरक्षण 
जल ही जीवन है वन-उपवन को न करना दोहन।


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