Saturday, October 1, 2016

वे वीर (कविता )


कर्मभूमि को धर्म मानकर
जीवन देश के नाम किए।
हिन्दू नहीं, मुस्लिम नहीं
भारतीय होने का अभिमान किए।
      ऋतु हो चाहे जो कोई भी
      चाहे हो कोई पर्व-त्योहार
      राष्ट् ध्वज थाम हाथों में
      लहू देश के नाम किए।
रिश्तों की चौखट लॉंघ चले
प्रेयसी का दिल तोड़ चले।
घर-ऑंगन का स्नेह मन में
यादों की झोली लिए चले।
      मॉं के पकवान की खुशबू को
      भू की मिट्टी में खोज लिए।
      धूप-छॉंव का आभास कहॉं ?
       व्योम के शामियाने तले
पुत्र, पति,पिता वे किसी के
स्नेह,प्रेम,प्यार के सदके
शीश नमन वतन के लिए
सॉंसें मातृभूमि के नाम किए।
       राष्ट् सेवा का संकल्प वे,
       ऑंखों में साकार किए
       वे वीर कैसे थे ? जिन्होंने
       उम्र देश के नाम किए   
      भारतीय  होने का अभिमान किए।

                                             ------- अर्चना सिंहजया’        
             
            उन  शहीदों   को भावपूर्ण  श्रद्धांजलि ,जो बिना स्वार्थ के ही अपनी साँसे  देश के नाम किए /  


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