कर्मभूमि को धर्म मानकर
जीवन देश के नाम किए।
हिन्दू नहीं, मुस्लिम नहीं
भारतीय होने का अभिमान किए।
ऋतु हो चाहे जो कोई भी
चाहे हो कोई पर्व-त्योहार ।
राष्ट् ध्वज थाम हाथों में
लहू देश के नाम किए।
रिश्तों की चौखट लॉंघ चले
प्रेयसी का दिल तोड़ चले।
घर-ऑंगन का स्नेह मन में
यादों की झोली लिए चले।
मॉं के पकवान की खुशबू को
भू की मिट्टी में खोज लिए।
धूप-छॉंव का आभास कहॉं ?
व्योम के शामियाने तले ।
पुत्र, पति,पिता वे किसी के
स्नेह,प्रेम,प्यार के सदके ।
शीश नमन वतन के लिए
सॉंसें मातृभूमि के नाम किए।
राष्ट् सेवा का संकल्प वे,
ऑंखों में साकार किए ।
वे वीर कैसे थे ? जिन्होंने
उम्र देश के नाम किए ।
भारतीय होने का अभिमान किए।
------- अर्चना सिंह‘जया’
उन शहीदों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ,जो बिना स्वार्थ के ही अपनी साँसे देश के नाम किए /
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