बारिश से बचने की कोशिश में
कपोत छज्जे पर आती थी।
धूप में रखे सरसों व चावल
चिड़िया चुगकर उड़ जाती थी।
अमिया पर बैठ ऑंगन में
काली कोयल गाया करती थी।
बाहर बगीचे में मधुकर भी
गुनगुन शोर मचाता था।
पर कहॉं गई वृक्षों की टहनियॉं ?
कॉंव-कॉंव का स्वर अब कहॉं ?
ईंट की दीवारें हैं अब दिखती
ईमारतें ही ईमारते यहॉं वहॉं।
भयभीत है वृंद सारे,उड़ चले
खोजने अपना नूतन आशियॉं।
-------------अर्चना सिंह जया
No comments:
Post a Comment
Comment here