Tuesday, September 13, 2016

हरि हो गति मेरी..............गौरी दिवाकर की प्रस्तुति

गौरी दिवाकर अंतर्राष्ट्रीय  स्तर की नृत्यांगना है, आज उसकी पहचान राष्ट्र  में ही नहीं विश्व में भी प्रख्यात है। जैसा कि उसके नाम में ही ख्याति का सार छुपा है। गौरी यानि शिवा, अम्बिका शक्ति की अपार भंडार, दिवाकर यानि सूर्य,भानू जिसकी योग्यता में ही सूर्य-सा तेज फिर किसी भी प्रकार की बाधा उसे अग्रसर होने से नहीं रोक सकी। हर भीड़ को चीरती हुई वह अपने लक्ष्य तक पहुॅंच पाने में सक्षम हो पाई और आज विश्व के कोने-कोने तक अपने शौर्य का पंचम लहरा पाने में सफल हो पाई है। जमशेदपुर से दिल्ली तक का सफर संघर्ष पूर्ण भी रहा पर हौसला कभी थमने को नहीं आया, आज ये उसी मेहनत का परिणाम है। गौरी दिवाकर को 2008 में उस्ताद बिस्मिलाह खॉन युवा पुरस्कार संगीत नाटक एकादमी की तरफ से नवाज़ा गया।



                ये बात उस शाम की है जब मेरा मन प्रेमभाव से यूँ रंग गया था जैसे शहद दूध में, मिसरी जल में घुल जाती है। अगर मैं श्रेय दूॅ तो यह 15 जनवरी 2016, 7.30 की उस शाम को जाता है जहॉं अदिति मंगलदास जी के सानिध्य में मिस गौरी दिवाकर द्वारा प्रस्तुत नृत्य ने श्री राम सेंटर,नई दिल्ली के हॉल में सुफियाना समॉं बॉंध दिया था। मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकती हूॅं कि उस हॉल में उपस्थित सभी दर्शकगण का मन उस पल प्रेम रंग से भींग चुका था। उस संध्या की बेला में समय की गति जैसे मद्धिम हो चली थी, देखने वालों की ऑंखें कौंध-सी गई इसका पूरा श्रेय गुरु बिरजू महाराज जी , जयकिशन महाराज जी  और अदिति मंगलदास जी को जाता है,जिनके आशीष  की छाया सदैव गौरी दिवाकर पर बनी हुई है। साथ ही गौरी की असीम प्रयास व कठिन परिश्रम ही है जो उसे इस मुकाम़ तक पहुॅंचाया।
                         कृष्ण  का प्रेम संदेश जो विश्वविख्यात है उसी संदेश की प्रेम वर्षा नृत्य और संगीत के माध्यम से हो रही थी। नृत्यांगना गौरी दिवाकर की गति हरि की ओर ही हो चली थी, दर्शकगण तन-मन से हरि के रंग में तल्लीन हो रहे थे। श्री समीउल्ला खॉन ने तो अपनी मघुर संगीत का जादू ही बिखेर दिया। गौरी के अन्य साथीगण योगेश गंगानी,आशीश गंगानी व मोहित गंगानी जी का सहयोग भी सराहनीय था। गौरी दिवाकर के हावभाव ,ताल और खॉन जी का स्वर दोनों ही लोगों के तन-मन के तार को झंकझोर रहे थे। नृत्य व संगीत दोनों ही एक रंग हो चले थे, तालियों की गूॅंज हौसले को बुलंद करने का साहस दे रहे थे। नृत्य की गति थमने को नहीं आ रही थी। शाम की वो छटा ने धर्मों के बंधनों से परे कहीं ये  स्पष्ट  करते नजर आ रहे थे कि प्रेम का रंग एक ही है इसका कोई मज़हब नहीं होता । उसका नृत्य अध्यात्म के संपर्क में ला सकने में सक्षम हो चला था। हम इंसान मज़हबों की डोर से इसे बॉंधने की भूल कर जीवन रस का आनंद लेना ही भूल जाते हैं। सच,
         धर्मों के बंधन से ,परे थी वो शाम।
         कानों में रस घोलती स्वर ,थाप व ताल ।
नृत्यांगना की लय-ताल की गति सचमुच हरि की ओर खींचती चली जा रही थी, वो तो पूरी तरह से ‘‘हरि हो गति मेरी ..........’’ में गतिमान हो चली थी,एकाकार हो चली थी। नृत्य की भावाभिव्यक्ति सभी के  हृदय  को छू रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी उपस्थित लोग हरि हो गति में..... यानि वो भी हरि को समर्पित होते जा रहे थे ,सच इतनी कम उम्र में ही ये महारत हासिल करना अपने आप में ही चुनौति पूर्ण कार्य है। समय-समय पर उसकी प्रस्तुति देश-विदेश में देखने को मिलती है। गौरी जैसी महान कलाकारा स्वयं के साथ-साथ माता-पिता, गुरु व देश का नाम भी रौशन करती है।

                                                                             .....................अर्चना सिंह जया




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