मैं अदृश्य
मुझे देखा नहीं,
मुझे छुआ नहीं,
नायक बन बैठा मैं।
नायक नहीं खलनायक,
ऐसा कहने लगे हैं हमें।
नामकरण भी कर दिया,
'कोरोना' पुकारने लगे सभी।
खुद का गिरेबान झांका नहीं,
क्यों द्वेष,छल कपट, नफरत
हिय में छुपा रखा है तूने ?
इसे मिटाने और तुम्हें सिखाने,
का लिया संकल्प है मैंने।
बहरूपिया बन आता रहूंगा,
संहार करने को यहां।
बुद्धि हीन देख भावना,
हृदय काठ का है हुआ।
इंसानों व रिश्तों से परहेज़
करते देखा फिर जब,
अदृश्य बन अवतरित हुआ,
सिखाने को नया सबब।
मानव ईश की सुंदर रचना
पर कद्र न तुझ से हुआ।
नारी का तिरस्कार किया,
बहन बेटी का बालात्कार ।
कहां गई इंसानियत तेरी,
धरा बिलखने कराहने लगी ।
भाई-भाई में प्रेम नहीं,
मां का अनादर भी किया।
मैं अदृश्य नायक था तेरा
खलनायक बनने को देखो,
वर्षों बाद विवश मैं हुआ।
बुद्धि विवेक भ्रष्ट हुई तेरी,
विष कब से मैं हूं पी रहा।
अपराधबोध तुझे कराने,
विकराल रूप धारण है किया।
जीवन अनमोल है पर
कभी विचार तक नहीं किया।
आत्मावलोकन करने का
विचार मन में क्यों आया नहीं?
दूरियां बढ़ती ही जा रहीं,
घाव दिलों के यहां भरते नहीं।
जो मैंने एहसास ज़रा कराया,
अदृश्य शक्ति मैं हूं कहीं।
विवश हो बिलख रही दुनिया,
फिर भी अहम छोड़ा नहीं।
टूटने को हुआ तत्पर,
झुकने को अब भी तैयार नहीं।
नायक से खलनायक का,
सफ़र है मंजिल नहीं।
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं