Saturday, November 12, 2016

काश! जो हम भी बच्चे होते ( कविता )

 

काश! जो हम भी बच्चे होते
 प्यारे-प्यारे सच्चे होते,
 तितली जैसे रंग-बिरंगे
 सुंदर सुनहरे सपने,अपने होते।
 काश! जो हम भी बच्चे होते
 आसमॉं में फिर उड़ जाते
 अरमानों के पंख फैलाए
 दामन ,इंद्रधनुष के रंग में रंगते।
 काश! जो हम भी बच्चे होते
 रोटी-दाल की न चिंता करते
 टॉफी से ही भूख मिटाते
 रोते इंसानों को हॅंसाते।
 काश! जो हम भी बच्चे होते
 हिंसा हम न यहॉं फैलाते
 प्यार, शिष्टाचार का पाठ सिखाते
 देश को अपना स्वर्ग बनाते।
 काश! जो हम भी बच्चे होते
 दामन सबका स्नेह से भरते।

                             ------ अर्चना सिंह‘जया’

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