Sunday, August 25, 2019

गज़ल


न तलाशा करो ,सामानों में उनके निशाँ।
जख्म गहरें है दिलों पे, खोजो न यहाँ वहाँ।

 दूरियों की कसक बढ़ती जाती है हर लम्हाँ

दिन खामोश सी और रात हो जाती है बेज़ुबा।

अपने ज़बातों को न संजोया करो सिर्फ पन्नों में
साथी संग बाँटा करो बिखरने न दो जहाँ तहाँ।

Saturday, August 24, 2019

जय हो नंदलाल


जय ,जय हो नंद लाल
देवकी ने जन्म दिया,
यशोदा ने लाड प्यार।
पूतना का कर संहार,
गोपाला ने भरी मुस्कान।

जय, जय हो नंद लाल
गेंद यमुना में डार,
कालिया का किया दमन।
मथुरा जन हुए प्रसन्न,
गोपाला को कर शीश नमन।

जय, जय हो नंद लाल
मुख में ब्रम्हाड देख,
यशोदा हुई चकित अपार।
माखनचोर,नंद किशोर
गोपियाँ करती पुकार।

जय,जय नंद लाल
बकासुर ,अघासुर  वध कर
मथुरा का किए उद्धार।
कंस के अत्याचार को
हंँसी खेल में दिया टाल।

जय, जय हो नंद लाल
ऊखल बंधन ,माँ संग रूठन
नटखट की लीला अपार।
बाँँसुरी धुन पर पशु पक्षी
गोपियाँ भी थी निहाल।

जय,जय हो नंद लाल
यमुना तट गोपियों संग
कृष्णा की लीला अपार।
रास रचे राधे संग,
बैठ कदम की डार।

जय,जय नंद लाल
सुदामा से गले मिल
जीवन दिया उबार।
प्रेम ,भक्ति को नत हो
द्रोपदी का हरे लाज।

जय, जय हो नंद लाल
बल को छल से हरे
छल को बल से मार।
धर्म, सत्य का साथ दे
कुरुक्षेत्र में दिए ज्ञान।
जय, जय हो नंद लाल।

Tuesday, August 20, 2019

कुदरत की पुकार

कुदरत की हाहाकार सुन,मन कुछ विचलित हो चला।
भूल कहाँ हो गई? हमसे,ये प्रश्न मन में है फिर उठा।
वक्त रहते सम्भल जा तू,करुण रुदन है प्रकृति का।
तटिनी के विरह गीत से,छलनी हुआ धरा का कोना।
प्रण ले स्वयं से तू आज,धरोहर को नहीं है वंचना।
विरासत में मिली संपदा को,आगे बढ़ तुम्हें है सहेजना।
अपनी भूल से सीख कर,सदाचार मन में सदा रखना।
जल,थल,वायु प्रदूषण पर नियंत्रण बनाए रखना,
वरना भावी पीढ़ी भटकने को विवश होगी यहाँ वहाँ।
जड़ी बूटी औषधि धरोहर प्रकृति है सहेजे हुए संपदा ,
बुद्धिजीवी संभल जा तू वक्त ने दे अच्छा अवसर यहाँ।
प्रकृति पुकार सुन चल नभ,जल,थल का कर संरक्षण 
जल ही जीवन है वन-उपवन को न करना दोहन।


Thursday, August 1, 2019

कहर में जि़ंदगी

       कहर में ज़िंंदगी

जल कहर में फंसी ज़िंंदगी ,
कुदरत के आगे बेबस हो रहे
बच्चे, बूढ़े व जवान सभी।
इंसान के मध्य तो शत्रुता देखी,
पर यह कैसी दुश्मनी ठनी?
मानव व कुदरत के बीच,
बिन हथियार के जंग है छिड़ी।
संयम का बांँध तोड़ नदी-जलधि,
सैलाब में हमें डुबोने निकली।
यह जलजला देख प्रकृति का,
नर-नारी,पशु-पक्षी भयभीत हैं सभी।
प्रतिवर्ष मौन हो बुद्धिजीवी,
देखा करते तबाही का मंज़र यूँ ही।
मगरमच्छ आँसू व सहानुभूति,
दिखा भ्रमित करती सरकार यूँ ही।
न जाने कब सचेत होंगे हम?
और उभर पाएँगे विनाश बवंडर से।
आपदा की स्थिति से वाकिफ़ सभी,
किंतु सजग व तत्पर होते हम नहीं।
कुदरत के संग जीना तो दूर,
उसे सहेजना भी गए हम भूल।
उसी की आँगन में खड़े,
उसके बर्चस्व को ललकारने लगे।
शिक्षा व ज्ञान किताबों में बंद रख,
मानवता से परे दफ़न हो रही जिंदगी।
                   -----  अर्चना सिंह जया

Friday, June 21, 2019

Dayaa ka Dwaar' story


'Gate of Mercy' name in English. Translated by Archana Singh jaya.



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योग दिवस par Kavita

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता)

 योग को शामिल कर जीवन में
 स्वस्थ शरीर की कामना कर।
 जीने की कला छुपी है इसमें,
 चित प्रसन्न होता है योग कर। 
 घर ,पाठशाला या दफ्तर हो चाहे
 योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
      शिशु, युवा या वृद्ध हो चाहे
      योग ज्ञान दो, हर गॉंव-शहर।
      तन-मन को स्वस्थ रखकर
      बुद्धिविवेक है विस्तृत करना।
      इंद्रियों को बलिष्ठ बनाने को
      योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
विज्ञान के ही मार्ग पर चलकर
योग-साधना अब हमें है करना।
आन्तरिक शक्ति को विकसित करता,
योग की सीढ़ी जो संयम से चढ़ता।
ईश्वर का मार्ग आएगा नज़र,जो
योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।
     दर्शन, नियम, धर्म से श्रेष्ठ  
     योग रहा सदा हमारे देश।
     आठों अंग जो अपना लो इसके
     सदा रहो स्वस्थ योग के बल पे।
     जोड़ समाधि का समन्वय कर
     योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।

                                                                                          21 june   अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर
                                                                                                    - अर्चना सिंह 'जया' 

Thursday, June 6, 2019

सुप्रभात

कोयल की कूक सुबह सुनाई दे गई,
मन में सोए अहसास फिर जगा गई ।
छू कर तन को,पवन जब गुजरती है,
कोई ख़लिश सी मन में फिर जगती है।
अमिया की टहनी पर चढ़ना-झूलना,
पल में मधुकर के पीछे दौड़ना भागना।
बाबा की हथेली से बताशे किशमिश ले,
वो माँ की स्नेह आँचल में आकर छुपना।
बालपन की वो अठखेलियाँ याद आती,
बाबुल की याद तरोताज़ा कर जाती है।
प्रातः पिक गाकर सबका मन है लुभाती,
उदासी में भी मीठा रस घोल है जाती।