लाकडाउन है हर
गाँव-शहर डगर।
ऐसे में प्रातः
सुनाई दे गया,
काक का स्वर
न जाने देता है प्रतिदिन
हमें कैसा संदेश?
किस आगंतुक की
है सूचना दे रहा?
'कोरोना' भय या कोई
खुशी का संकेत।
नित सवेरे सन्नाटे में
पक्षियों का स्वर
स्पष्ट है सुनाई दे रहा।
स्वतंत्र होकर पक्षीवृंद
इक संदेश हैं दे रहे,
झकझोर कर कह रहे।
महसूस कर हे मानव!
स्वर्ण पिंजर का दर्द।
दीवारें हों जैसी भी
ईंट या लोहे की होंं,
या हो कुंठित विचारों की
हृदय की टीस समान
चाहे वो जीव हो कोई भी।
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