Monday, March 23, 2020

कोरोना

रास्ते आज तन्हाँ हो गए
बिन राहगीर व मंजिल के।
क्या ख़बर थी कि
वक्त ऐसा भी आएगा।
हम बुद्धिजीवियों को,
कोरोना ही समझा पाएगा।
खामोश हर सड़क, फुटपाथ
गली ,मुहल्ला व शहर
इक पल में अकेला हो जाएगा।
आज इन्साँ को, इन्साँ का
कद्र समझ में शायद आएगा।
एकांत में रहकर ज़रा सोचना
अब ज़िदगी की अपनी दास्ताँँ।
              .......अर्चना सिंह जया

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