सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।
भावांजलि: जय जय नन्दलाल कविता: जय जय नन्दलाल लड्डू गोपाल कहो या नन्द लाल कहो, मंगल गीत गा, जय जयकार करो । समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का विष्णु अवतार लिए,...
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