Wednesday, June 21, 2023

जिंदगी

क्या-क्या खेल दिखाती है जिंदगी
बहुत कुछ हमें सिखा जाती है जिंदगी।
जाने अनजाने में बहुत कुछ कह जाती है जिंदगी।
एक लम्बे सफर पर ले जाती है जिंदगी 
कई उतार-चढ़ाव भी लाती है जिंदगी।
कुछ कड़वे,कुछ मीठे पल लाती है जिंदगी।
कभी रुलाती तो कभी हँसाती भी है,
रिश्तों की अहमियत भी समझाती है जिंदगी।
जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, 
पलभर में करवट बदलती है इसका एतबार नहीं।
सारी होशियारी धरी ही रह जाती है,
जब सुनामी संग सुंदर लम्हें ले जाती है जिंदगी।
आज को कल में बदल देती है जिंदगी,
यथार्थ को अतीत बना देती है जिंदगी।
वक्त रहते उधड़े जख्मों को सी ले,
कहीं नासूर बन निगल ना जाए ये जिंदगी।
पल-पल से लम्हों को चुराना सीख ले,
रेत सी फिसल जाए,उससे पहले जीना सीख ले ।
हरपल को उत्सव-उमंग से जी लो वरना,
पल-पल को यादों में, क्षण में ही बदल देगी जिंदगी।
घर-घर की रौनक चहल-पहल है जिंदगी,
ना जाने कब साँसों को तस्वीर में बदल दे जिंदगी।



Friday, September 23, 2022

उम्मीद की लौ

जीवन में हो अंधकार घना, तो उम्मीद की लौ जला लेना

निराशा के तम को कभी ना, दिल का कोई कोना देना।

आशा-उम्मीद के दीपक से कठिन राह जगमग कर लेना,

हिय में छुपाए आत्मविश्वास को बोझिल ना होने देना।

किसी रोते को हँसाकर भी,अपना मन हल्का कर लेना,

जुगनू से सीख गहन अंधेरे में भी कैसे है चलते रहना।

जिंदगी के सुहाने सफर में, धूप-छाँव से ना फिर डरना।

बाहर के अंधकार से पूर्व, मन के तिमिर को दूर करना।

ज्ञान की मशाल जलाए चल, कर रौशन जग का कोना

अज्ञान के तम को मिटा, मानवजन को जागृत करना।

जीवन में हो अंधकार घना, तो उम्मीद की लौ जला लेना।





Tuesday, August 30, 2022

न्याय की गुहार

ये मशाल बुझ न जाए,
दिलों में उठते सवाल थम ना जाए।
निर्भया की अन्तरात्मा को 
किया तार-तार जिसने,कानून के बंधन से
कहीं वो मुक्त ना हो जाए।
वेदनाओं को झेल कर,जीवन गंवाने वाली वो।
सम्पूर्ण ओजस्विता के साथ,
न्योछावर कर दिए जिसने प्राण।
कभी तेजाब तो कभी अग्नि में क्यों झोंकी गई, 
लड़की होना क्या है घोर अपराध ?
जो जैसे चाहे वैसे रौंदकर मुस्काए कहीं।
कब रुकेगा अपराध यह पूछतीं हैं बेटियाँ
जीवन छीन लेने का कठोर दंड दो,
न्याय की गुहार लगा रही थाम मशाल,
दरिंदगी की हद पार कर गए,
बांधने हैं हमें उनके हाथ।
कानून भी नहीं सशक्त यहां,
किस बंधन से बांधे इनके हाथ।
दर्द का एहसास जो करना चाहो,
निर्भया को अपने घर की बेटी मानो।
पिंजरे में बंद कर दो अपराधियों को
स्वच्छंद लेने दो सांस समाज को।
क्यों भयभीत हो बेटियां यहां, 
घर-घर पूजनीय हैं जब वो,
दुर्गा, लक्ष्मी- सरस्वती रूप में जहां।
भ्रूण हत्या, बलात्कार, हत्या
जैसे कई जघन्य अपराध से, 
कब मुक्त हो पाएगा हमारा समाज?
सम्मान की हकदार हैं घर-घर की बेटियाँ।
बेटियों से घर,आंगन,धरा है सजती
परिवार, समाज, राष्ट्र हित योगदान दे रहीं
फिर भी सम्मान की भीख माँगती, 
उठो जागो हे मानव! सर्वनाश का है आगाज़।
इनका हमें सदा रखना है मान, 
 सही मायने में दें हम मानवता का प्रमाण। 





Sunday, May 8, 2022

मां

 मां ऐसी होती है।

अपने अश्रु को छुपा,

सदा मुस्कान बिखेरती है।

अपने सपनों को दफना कर

बच्चों को स्वप्न पर देती है।

मां ऐसी होती है।

अपनी थाली को परे रख

बच्चों को भोजन परोसती है।

अपनी नींद से हो बेपरवाह

बच्चों को लोरी-थपक्की देती है।

मां ऐसी होती है।

हाथों के छाले को ढंक कर,

चाव से रोटी सेंका करती है।

स्वयं के भावों को छुपा

बच्चों के जीवन में रंग भरती है।

मां ऐसी होती है।

बिस्तर गीला गर हो मध्य रात्रि

सूखे नर्म बिस्तर हमें देती है।

तेज़ तपते हुए ज्वर में

पानी की पट्टी रख सिरहाने होती है।

मां ऐसी होती है।

जाने कैसे वह बिन कहे

मन के भाव सदा पढ़ लेती है।

गर अंधियारा छाये जीवन में

थाम हाथ राह रौशन करती है।

मां ऐसी होती है।

कभी सख्त मन से डांट लगा 

खुद भी रोया करती है।

कभी नीम सी कड़वी तो

कभी शहद सी मीठी बातें करती है।

मां ऐसी होती है।

मां धरती सी,कोमल पुष्प सी

चंदन बन महका करती है।

हिय विशाल है उसका जहां

ममता,स्नेह,प्रेम,दया,क्षमा समेटे रखती है।


* अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश 

मां ऐसी होती है।








Wednesday, January 5, 2022

चयनित रचनाएँ

 मेरी चयनित, स्वरचित और मौलिक रचनाएँ आपके समक्ष ✍🙂🙏






चयनित रचना

 Meri Selected Rachna🙏🙂✍

मेरी चयनित, स्वरचित और मौलिक रचनाएँ आपके समक्ष।

 



Wednesday, December 29, 2021

मैं और मेरी चाय

                 " मैं और मेरी चाय "☕

मैं और मेरी चाय आपस में अक्सर ये बातें करती हैं,

तन्हाई में सवाल, मुझसे पूछा करती है।

मैं नहीं होती तो प्रातः,तू करती किसका इंतज़ार ? 

कोमल हाथों के स्पर्श का प्रतिदिन, मुझे रहता  इंतज़ार।

होंठो से लेती हर सिप में महसूस होता है प्यार ,

सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी रहता, तुम्हारा इंतज़ार। 

मैं सिर्फ चाय नहीं ,हूँ तुम्हारा प्यार, संगी साथी, सहचर, 

तुम्हारे सुख में और दुख में भी नहीं छोड़ती साथ। 

सच ही कह रही हो - डीयर चाय 

बिस्कुट, सैंडविच,आलू पराठे,पकौड़े संग भी 

निभाती आई हो अपना साथ।

गुन गुनी गर्मागर्म भाती हो हर बार,

शीत काल में तुम सा नहीं कोई यार। 

जितनी भी तारीफ करूँ कम लगती हर बार ,

रिश्तों से मिले दर्द अपनों से मिली रुसवाई में भी

कभी भी प्याली ने नहीं छोड़ा साथ।

चाहे ऋतु हो जो कोई भी या हो दिन-रात,

थाम हाथ में महसूस होता,

 जैसे दूर करती हो तन्हाई और हर लेती पीर।

अंतर्मन पुलकित हो उठता और 

आंखों में झलक उठता मधुर प्यार।  

मैं और मेरी चाय प्यारी,हमजोली है मेरे जीवन की।