सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।
Wednesday, February 28, 2018
Saturday, February 24, 2018
होली है....( कविता )
होली है
चलो फिर से
गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है।
पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है।
जीवन को आनंद के रंग में भिंगो ली,
अमिया पर बैठी कोयल है बोली,
‘चलो बंधुजन मिल खेले होली।’
चिप्स, नमकीन, गुझिया, दहीबड़े
दिल को भाते हैं पकवान बड़े।
ढोल, मजीरे मिलकर बजाते हैं
चलो फिर से
फगुआ मिलकर गाते हैं
पौराणिक कथाएॅं गुनगुनाते हैं।
अबीर संग सभी झूमते गाते हैं
‘फागुन का ऋतु सभी को भाता,
गाॅंव-गाॅंव है, देखो फगुआ गाता।’
अंग-अंग अबीर के रंग में डूबा,
तन-मन स्नेह रंग में भींगा।
लाल, नीली, हरी, पीली
सम्पूर्ण धरा रंग-बिरंगी हो - ली।
गिले-सिकवे भूले, सखा-सहेली
सकारात्मकता का प्रचार करती आई, होली।
गुलाल संग बोलो-होली है, होली।
............... अर्चना सिंह जया
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
चलो फिर से
गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है।
पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है।
जीवन को आनंद के रंग में भिंगो ली,
अमिया पर बैठी कोयल है बोली,
‘चलो बंधुजन मिल खेले होली।’
चिप्स, नमकीन, गुझिया, दहीबड़े
दिल को भाते हैं पकवान बड़े।
ढोल, मजीरे मिलकर बजाते हैं
चलो फिर से
फगुआ मिलकर गाते हैं
पौराणिक कथाएॅं गुनगुनाते हैं।
अबीर संग सभी झूमते गाते हैं
‘फागुन का ऋतु सभी को भाता,
गाॅंव-गाॅंव है, देखो फगुआ गाता।’
अंग-अंग अबीर के रंग में डूबा,
तन-मन स्नेह रंग में भींगा।
लाल, नीली, हरी, पीली
सम्पूर्ण धरा रंग-बिरंगी हो - ली।
गिले-सिकवे भूले, सखा-सहेली
सकारात्मकता का प्रचार करती आई, होली।
गुलाल संग बोलो-होली है, होली।
............... अर्चना सिंह जया
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
Friday, February 9, 2018
ANTARAA [ STORIES]
You can search my story books by name Archana Singh or Archana Singh 'jaya'
ANTARA [ Part 1,2,3,4.....]
https://www.matrubharti.com/ebook
Friday, January 26, 2018
मेरा अभिनंदन तुम्हें। (कविता)
मेरा अभिनंदन तुम्हें।
स्नेह पुष्प है नमन तुम्हें,
हे मातृभूमि! मेरा अभिनंदन तुम्हें।
माटी कहती कहानी तेरी
कोख से जनमें सपूत कई,
शहीद वीरों को करुॅं भेंट सुमन।
जो अपनी साॅंसें देकर,
वादियों को गले लगाकर,
भूमि को सेज बनाकर,
पावन किए हमारा वतन।
स्नेह पुष्प है तुम्हें नमन,
माॅं के अश्रु से भिंगा गगन
पथराई आॅंखें राह निहारती
पत्नी ,बच्चों का जो पूछो मन।
आस न रही बाकी कोई,
कहाॅं गए जाने सजन ?
बिटिया का टूट गया है मन
पिता के साथ देखती थी स्वप्न।
बिखरा है उसका मन दर्पण
ये पीड़ा सहे कैसे आजीवन ?
स्नेह पुष्प है तुम्हें नमन,
पर उस माॅं का हिय
कितना है विशाल/
दूसरे पुत्र को फिर से
वतन को सौंप हुई निहाल।
एक नहीं सौ पुत्र भी जो होते
सीमा पर हम उसे भेजते।
राष्ट् प्रेम की वो दीवानी
किसी की बेटी, किसी की रानी।
ऐ माॅं ! स्नेह पुष्प है तुम्हें नमन,
............... अर्चना सिंह जया
Monday, January 22, 2018
जय माॅं शारदा! [प्रार्थना]
जय माॅं शारदा।
हे माॅं! वागेश्वरी
विद्या-बुद्धि दायनी
चरणों में अर्पित पुष्प नमन।
कर जोड करते वंदना हम।
हे माॅं! वीणापाणी
जय माॅं शारदा।
मुख पर तेज ज्ञान का
सद्भावना की करे हम याचना।
अज्ञानता दूर की है प्रार्थना।
हे माॅं! महाश्वेता
जय माॅं शारदा।
पद्मासना विराजती
शत्-शत् करते उपासना।
प्रातः सदैव करते आराधना।
हे माॅं! हंसवाहिनी,
जय माॅं शारदा!
ज्ञान ज्योति के प्रसार से,
सुगम पथ हमारा करना।
आशीष की कृपा कर देना।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर,
हे माॅं! सरस्वती आशीष देकर,
दामन खुशियों से भर देना।
............ अर्चना सिंह जया
Friday, January 12, 2018
उत्सव,उल्लास है लाया ( कविता )
उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]
पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता
‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
‘‘खेतों में हरियाली आई,
पीली सरसों देखो लहराई।
खरीफ फसल पकने को आयी,
सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
नववर्ष का देख हो गया आगमन,
पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
पवित्र स्नान कर, देव को नमन
अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल,
लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
बादलों को चल आएॅं छूकर ।
रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।
------------- अर्चना सिंह‘जया’
‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
‘‘खेतों में हरियाली आई,
पीली सरसों देखो लहराई।
खरीफ फसल पकने को आयी,
सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
नववर्ष का देख हो गया आगमन,
पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
पवित्र स्नान कर, देव को नमन
अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल,
लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
बादलों को चल आएॅं छूकर ।
रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।
------------- अर्चना सिंह‘जया’
Sunday, December 31, 2017
भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता )
भावांजलि: नव वर्ष का आगमन ( कविता ): गुजरे कल को कर शीश नमन, मधुर मुस्कानों से हो नववर्ष का आगमन। वसंत के आगमन से पिहु बोल उठा, फिर स...
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