Saturday, May 21, 2016

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (कविता)

हम ही हैं माँ का गर्व,          
हम ही हैं पिता का गौरव ।
मान-सम्मान है हमीं से
तुम्हारा हौसला और गुरूर हमीं से।
बुलंदियों को छूना जानते हैं।
मत समझो कम किसी से ।
क्यों बाँधने चले नदी को?
क्यों रोकते पवन की गति को?
खुलकर जीने दो, जीने दो
जमीं ही नहीं आस्माँ भी छूना जानती हूँ।
मत समझो कम किसी से ।
घर सम्भाला, मान-मर्यादा सम्भाली
शीला-विज्जा, रुक्मिणी ,शकुंतला ने।
विदुषी  ही नहीं, सशक्त थीं नारी तब भी
गार्गी के व्याख्यान से हुए परास्त सभी।
मत समझो कम किसी से ।
हम ही हैं जो हिम पर्वत पर
राष्ट्ध्वज लहराने का दम भरते हैं।
चाँद पर कदम रखकर हम 
देश की मिट्टी को गौरवांवित कर सकते हैं।
सिर ऊँचा कर राजपथ पर हम चलते हैं,
मत समझो कम किसी से ।
ना दुर्गा ,ना काली रूप
मानवता के रूप में जन्मी हूँ
भू लोक में मान बढ़ाने वाली।
फिर क्यों भ्रूण हत्या कर 
नहीं देखने देते स्वपनिल आकाश ?
क्यों समझते हो कम किसी से आज ?
जिंदगी की धूप छाँव का
जीकर करने दो एहसास
ख्वाबों और ख्यालों में ही क्यों ?
स्वच्छंद जीने दो, उड़ना चाहती हूँ अनंत आकाश।
नायडू ,टेरेसा ,बेदी, गाँधी-सा है विश्वास।
मत समझो कम किसी से आज।
जिस नाम से अब चाहो पुकार लो,
लक्ष्मी, आशा-लता, सानिया,
अरूणधति ही नहीें मात्र ;चावला ,ऊषा,मेरीकॉम
मॉ के कोख का बढ़ाकर मान
राष्ट् ही नहीं विश्व करेगा जिन्हें सलाम।
जन-जन में गूॅज लहरा देंगे 
परिवार ही नहीं राष्ट् व विश्व की हैं शान।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
बिटिया  भी है देश का अभिमान,
बिटिया है देश का अभिमान।
                                                                         ------- अर्चना सिंह‘जया’
                        
                             10 जनवरी 2016 राष्ट्रीय  सहारा पेपर, पेज -11मंथन पर आ चुकी है। 

No comments:

Post a Comment

Comment here