Thursday, September 10, 2020

किसको जिम्मेदार कहोगे?

कल भी औरों को दोष देते थे,

आज भी दोष मढ़ोगे।

यथार्थ को जो बूझोगे,

किसको जिम्मेदार कहोगे?

क्या वक्त को जिम्मेदार कहोगे?

 प्रतिदिन प्रयास करना है,

 नित आगे ही बढ़ना है।

 भूमि से हैं जुड़े, मेहनत करना है।

 माना वक्त कठिन है सबके लिए

 इससे नहीं डरना है।

अंतर्मन के द्वंद्व से स्वयं ही, 

हमें उभरना है।

जो कभी आत्मचिंतन करोगे,

फिर किसे, कैसे और

किसको जिम्मेदार कहोगे?

मानवता के परीक्षा की है घड़ी

बेरोजगारी,गरीबी और

 प्राकृतिक आपदा संग,

मानव की जंग है छिड़ी।

विजय- पराजय से हो भयभीत

किस पक्ष में खड़े रहोगे?

किसको जिम्मेदार कहोगे?

आज  समय आया है देखो

 खुद के हुनर को संवारने का

 गुजरते इस दौर को,

 इक अवसर में बदलने का।

 मिल कर हाथ बढ़ा तू साथी

दोष-प्रदोष का खेल समाप्त कर,

एक जुट हो अग्रसर होना है,

गंभीरता से इस पर विचार कर।

'कोरोना' ने रचा चक्रव्यूह है ऐसा

शायद यह मानव कुछ समझेगा।

स्वयं से विचार जो करोगे,

फिर किसको जिम्मेदार कहोगे?

क्या वक्त को जिम्मेदार कहोगे?







Friday, August 21, 2020

श्री गणेशाय नमो नमः


गौरी नंदन, जय जग वंदन

श्री गणेशाय नमो नमः।

विघ्नहर्ता, गणपति बप्पा

श्री गणेशाय नमो नमः।

शंकर सुवन, पार्वती नंदन

मात पिता की करके भक्ति

जगत प्रिय वे हुए सदा।

श्री गणेशाय नमो नमः।

मूषकवाहन, जय गजानन

श्री गणेशाय नमो नमः।

हस्तिमुख, हे मोदक प्रिय 

श्री गणेशाय नमो नमः।

सिद्धिविनायक, जय गणनायक

मनोकामना की कर पूर्ति

भक्तजन पर किए कृपा।

 श्री गणेशाय नमो नमः।

जय लंबोदर, हे विघ्नेश्वर

श्री गणेशाय नमो नमः।

एकदंत, जय वक्रतुंड

श्री गणेशाय नमो नमः।

हे गणाधिप, हे महाकाय

श्री गणेशाय नमो नमः।

जय अंबिकेय, जय शूर्पकर्ण 

प्रथम पूज्यनीय हैं, हे देवा

श्री गणेशाय नमो नमः।








Tuesday, August 11, 2020

जय बोलो गोपाल की


जय गोपाला, जय नंदलाला

जयबोलो घनश्याम की।

जय बृजमोहन, जय यशोदा नंदन

जय बोलो राधे श्याम की।

हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।

जय मधुसूदन, जय देवकी नंदन 

जय बोलो वासुदेवाय की।

जय मन मोहन,जय मुरलीधर

जय बोलो कन्हैयालाल की।

हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।

जय मुरारी, जय चक्रधारी

जय बोलो जगन्नाथ की।

जय केशव, जय गिरिधारी

जय बोलो वैकुंठनाथ की।

हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।

जय गोविंदा, जय जगद्गुरु

जय बोलो मनोहर लाल की।

जय सनातन, जय निरंजन

जय बोलो सुदर्शन लाल की।

हाथी घोड़ा पालकी, जय बोलो गोपाल की।





Wednesday, August 5, 2020

श्री राम में रम जाओ

मंगल गीत गाओ री सखि,
राम लला के गीत गाओ री
जय राम,श्री राम में रम जाओ री सखि।
मंगल गीत गाओ री सखि।

सरयू तट पर हुई भीड़ भारी,
धन्य हुई है अवध हमारी,
ईंट ईंट राम की है आभारी
झूम रहे बच्चे, बूढ़े, नर-नारी,
माटी माटी से आवाज आई
बस 'राम नाम है सुखदाई।'

राम लला के गीत गाओ री।
जय राम,श्री राम में रम जाओ री।

भूमि पूजन,पुष्प,तिलक कर
राम, राम की जयकार लगा।
राम नाम ही है सत्य साईं,
रोम रोम में राम समायी,
दो अक्षर में जग रमायी,
परम आनंद इस नाम में भाई।

राम लला के गीत गाओ री।
जय राम,श्री राम में रम जाओ री।

भक्ति रस में डूबी नगरी सारी,
सियाराम की छवि लागे प्यारी।
राम धुनी तन मन में रमाई।
धन्य-धन्य हुए अवध बिहारी।।
धरती अंबर में है गुंजायमान,
तन मन में रम गए सियाराम।

राम लला के गीत गाओ री।
जय राम,श्री राम में रम जाओ री।




वक्त का खेल

कितने मजबूर हो गए हम,
पास होकर भी दूर हो गए हम।
बीत गई होली बस यूं ही,
न चढ़ा रंग प्रेम का सोचो।
दूरियां बढ़ा ली मानव ने,
वक्त ने रचा खेल है देखो।
'कोरोना' ने ज़िद कर ठानी,
इस दफा झुकेगा अहम तुम्हारा।
मानव को नया सबक मिलेगा,
प्रेम, विछोह को शायद समझेगा।
ईद पर्व भी कुछ इस तरह मनाई,
घर पर ही नमाज़ अदा कर,
खीर-पकवान की थाल सजाई।
बंद दीवारों में थोड़ी रौनक आई।
दूजा पर्व आ गया अनोखा,
बहन-भाई का स्नेह बंधन ऐसा,
डोरी,रोली व चंदन के जैसा।
पर इस वर्ष में किसने था सोचा
राखी बेबस पड़ी थाल में,
इंतजार की घड़ी हुई है लंबी।
जाने कब महामारी छटेगी?
एक जुट हो त्योहार करेंगे,
मिलकर हम सब फिर झूमेंगे।
वक्त की मार से जो मानव सीखे,
स्नेह,प्रेम संग से गर रहना सीखें।





Wednesday, July 29, 2020

कविता

✍️😃
उन्नीस बीस का अंतर
इस वर्ष ने अच्छे से समझाया।
छोटे बड़े झटके रह रह
जीवन को महसूस है कराया।
🙏🌸
कुछ नहीं रखा है 'मैं' में
खाली हाथ लौटना है वहां।
सफ़र है जिंदगी, मंजिल नहीं
जी ले इक इक पल यहां।

Tuesday, July 28, 2020

Tum kahan ja rahe ho

https://twitter.com/zorbabooks/status/1287645655645728769?s=20
For this poem, (in 50 words)

तुम कहां जा रहे हो?
✍🏻
कुछ दूर ही चला था,
कि काफ़िर नज़रों ने पूछा।
तुम कहां जा रहे हो?
मुस्करा कर कहा,
तंग हैं गलियां यहां,
सोच भी है कुंठित।
हीन हो रही मानसिकता,
मानव हो गया विक्षिप्त।
बेबस हो जीने से अच्छा,
गंतव्य हो और कहीं।
नई सोच, सफ़र नया
प्रश्न न करना फिर कभी।
      .... अर्चना सिंह जया