भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Friday, November 18, 2016

बचपन ( कविता )

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बचपन के वो दिन  थे पिता का था वो उपवन। रात की रानी से महकता था, बाबुल का घर-ऑंगन। पवन के झोंके से, खुशबू छू जाती थी तन-मन। नन्हें फू...
Monday, November 14, 2016

तुलिका और मैं.......

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'बाल दिवस' की शुभ कामनाएँ।
Saturday, November 12, 2016

काश! जो हम भी बच्चे होते ( कविता )

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  काश! जो हम भी बच्चे होते  प्यारे-प्यारे सच्चे होते,  तितली जैसे रंग-बिरंगे  सुंदर सुनहरे सपने,अपने होते।  काश! जो हम भी बच्चे होते ...
Friday, November 4, 2016

मातृभूमि ( कविता )

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  आभार प्रकट करते हैं हम ऐ वतन, तेरा सदा। तेरी मिट्टी की खुशबू, मॉं के ऑंचल में है छुपा। कई लाल शहीद भी हुए, फिर भी माताओं ने सपूत द...
Tuesday, October 25, 2016

एक लड़की ( कविता )

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सड़क पर रुकी थी,गाड़ी अभी दौड़ती-भागती एक लड़की, आई तभी आवाज़ लगाती,‘‘बाबूजी बाबूजी भूख लगी है जोरों की, हूॅं भूखी मैं कल की।’’ शायद!अनाथ ...
Tuesday, October 18, 2016

मेरा अभिनंदन तुम्हें ( कविता )

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    स्नेह पुष्प है नमन तुम्हें, हे मातृभूमि ! मेरा अभिनंदन तुम्हें। माटी कहती कहानी तेरी कोख से जनमें सपूत कई, शहीद वीरों को करुॅं भें...
Friday, October 14, 2016

तुलिका और मैं......

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