स्नेह पुष्प है नमन तुम्हें,
हे मातृभूमि ! मेरा अभिनंदन तुम्हें।
माटी कहती कहानी तेरी
कोख से जनमें सपूत कई,
शहीद वीरों को करुॅं भेंट सुमन।
जो अपनी सॉंसें देकर,
वादियों को गले लगाकर,
भूमि को सेज बनाकर,
पावन किए हमारा वतन।
स्नेह पुष्प है तुम्हें नमन,
मॉं के अश्रु से भिंगा गगन
पथराई ऑंखें राह निहारती
पत्नी ,बच्चों का जो पूछो मन।
आस न रही बाकी कोई,
कहॉं गए जाने सजन ?
बिटिया का टूट गया है मन
पिता के साथ देखती थी स्वप्न।
बिखरा है उसका मन दर्पण
ये पीड़ा सहे कैसे आजीवन ?
स्नेह पुष्प है तुम्हें नमन,
पर उस मॉं का हिय
कितना है, विशाल
दूसरे पुत्र को फिर से
वतन को सौंप, हुई निहाल।
एक नहीं सौ पुत्र भी जो होते
सीमा पर हम उसे भेजते।
राष्ट् प्रेम की वो दीवानी
किसी की बेटी, किसी की रानी।
ऐ मॉं ! स्नेह पुष्प है नमन तुम्हें।
हे मातृभूमि ! मेरा अभिनंदन तुम्हें।
............... अर्चना सिंह जया
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