भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Tuesday, October 25, 2016

एक लड़की ( कविता )

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सड़क पर रुकी थी,गाड़ी अभी दौड़ती-भागती एक लड़की, आई तभी आवाज़ लगाती,‘‘बाबूजी बाबूजी भूख लगी है जोरों की, हूॅं भूखी मैं कल की।’’ शायद!अनाथ ...
Tuesday, October 18, 2016

मेरा अभिनंदन तुम्हें ( कविता )

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    स्नेह पुष्प है नमन तुम्हें, हे मातृभूमि ! मेरा अभिनंदन तुम्हें। माटी कहती कहानी तेरी कोख से जनमें सपूत कई, शहीद वीरों को करुॅं भें...
Friday, October 14, 2016

तुलिका और मैं......

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Saturday, October 8, 2016

अधिकार ( कहानी )

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     स्त्री व पुरुष ईश्वर की संरचना है फिर उनके अधिकारों में भी समानता होनी चाहिए। स्त्री के अधिकारों को पुरुष वर्ग क्यों निर्धारित करता ...
Thursday, October 6, 2016

धरती हिली आसमान फटा ( कविता )

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धरती हिली,आसमान फटा अजीब सा एहसास हुआ। प्राकृतिक विपदाओं को देख, मानव  हृदय यूॅं कॉंप उठा। नभ का हिय छलनी हुआ, धरा का तन तार-तार कि...
Tuesday, October 4, 2016

तुलिका और मैं .......

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Sunday, October 2, 2016

हाड़ मॉंस का इंसान ( कविता )

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  हाड़ मॉंस का था वो इंसान , रौशन जिसके कर्म से है जहान। प्रतिभा - निष्ठा कर देश के नाम सुदृढ़ राष्ट् बनाने का थ...
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