दिन-प्रतिदिन नेतागण आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला और भी प्रबल करते जा रहे हैं। अगर गंभीरता से विचार करें तो ये स्वयं के व्यक्तित्व का ही परिचय देते नजर आ रहे हैं। अब वक्त परिणाम का नजदीक आता देख ये बेकाबू हो रहे हैं व अपने दायरे को लाॅंघ रहे हैं। कुरेद-कुरेद कर बेतुके मुद्दे खड़े करने की कोशिश में दिग्भ्रमित हो रहे हैं। अब यू पी चुनाव को ही देखिए, कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर, कभी आरक्षण-निर्दलीय वर्ग के नाम पर और हद तो तब हो गई जब कब्रिस्तान - श्मशान तक को भी नहीं छोड़ा। अरे भाई, मुर्दों बेचारों को तो रहने देते। क्या आप स्वयं को इतने कमजोर समझने लगे कि उनके सहारे की आवश्यकता आन पड़ी। देशवासियों अपने जीवित होने का एहसास कराओ और मुद््दों से भ्रमित करने वालों को आईना दिखाओ। हमें रोजगार, शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा व न्याय व्यवस्था जैसे मुद्दों से संबंधित बात करनी है, फजूल की बातें नेतागण अपनी जेब में ही रखें तो लोकतंत्र के लिए उचित होगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र के विषय में विचार करें, अगर इनके रिर्पोट कार्ड की बात करें तो न जाने कितनी जगह लाल स्याही से रेखांकित करने की आवश्यकता होगी जिसे देख भारत माता को लज्जा आएगी।
.............. अर्चना सिंह जया
In Rashtriya Sahara Paper, page 9.
.............. अर्चना सिंह जया
In Rashtriya Sahara Paper, page 9.
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