भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Tuesday, June 16, 2020

खुद की खुशी

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मायानगरी है ये दुनिया ही नकाब पहना है सबने यहां। उम्दा कलाकार हैं हमसभी सच से चुराकर आंखें देखो, कृत्रिम जीवनशैली को समझ बैठे हैं वास...
Thursday, June 4, 2020

धिक्कार है तेरा

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मैं गजानन पूजनीय क्या गुनाह किया मैंने? हां, शायद बुद्धिजीवी पर कर बैठा विश्वास मैंने। नहीं की थी कल्पना कभी अमानवीय व्यवहार की। मेरे...
Monday, May 18, 2020

क्यूँ मजदूर मजबूर हुए

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क्यूँ जीवन सफर में मजदूर, इतने मजबूर आज हुए। जिस शहर को आए थे कभी, वहीं से वे भूखे- बेघर हुए। मशीनें जहाँ उनकी राह देखती थीं, चूल्हे स...
Wednesday, May 6, 2020

अजीब विडंबना

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अजीब विडंबना है देश की जिंदगी या कोरोना में से किसका चयन करें इंसान? इतनी सी बात नहीं समझ रहा, उल्लंघन कर्तव्यों का कर रहा। दूध के लिए...
Thursday, April 30, 2020

A Story

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निःशब्द

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🙏 जाने -अनजाने में गुनाह कर बैठे हैं शायद, वरना सज़ा का हकदार यूँ हर कोई न होता।   💐🙏                    कल निःशब्द था मैं,आज भी निःश...
Wednesday, April 29, 2020

सांंसों की गिनती

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वक्त के साथ साथ ही, लम्हों की गिनती कम होने लगी। मंजिल से पहले ही यहाँ राह लम्बी, धुंधली सी लगने लगी। क्या जाने कब धूल, दिल दर्पण पर ...
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