भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Sunday, March 12, 2017

होली है

›
                      होली है  कविता चलो फिर से गुलाल संग बोलें-होली है,भाई होली है। पिचकारी ले, निकली बच्चों की टोली है। जीवन को आनंद...
Thursday, March 9, 2017

नारी तू सशक्त है [ कविता ]

›
                नारी तू सशक्त है। बताने की न तो आवश्यकता है न विचार विमर्श की है गुंजाइश। निर्बल तो वह स्वयं है, जो तेरे सबल होने से ह...
Wednesday, March 1, 2017

सत्ता की चाहत न देखी,हमनें ऐसी [ कविता ]

›
चुनावी रंग अभी सब पर है छाया ये कैसी होली खेल रहे हो भाया ? धैर्य तो रखो जरा, माना है फागुन आया रंगों की जगह कीचड़ फेंक रहे हो, यह कैस...
Saturday, February 25, 2017

फजूल की बातें

›
दिन-प्रतिदिन नेतागण आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला और भी प्रबल करते जा रहे हैं। अगर गंभीरता से विचार करें तो ये स्वयं के व्यक्तित्व का ही परिच...
Tuesday, February 21, 2017

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर व्यंग्य

›
                         आखिर किसका विकास...? मैं वह उत्तर प्रदेश हूॅं भाई। जहाॅं वर्षों से परम्परा कायम है ‘सबका साथ,सबका विकास’ न हमने ह...
Sunday, February 19, 2017

जन-जन की आॅंखों में धूल [ कविता ]

›
वचनों का मायाजाल क्यों बुन रहे हो ? जन-जन की आॅंखों में धूल झोंक रहे हो। स्वयं के हित से ऊपर उठकर, शहीदों से कुछ सीखते तुम जो परिवार ह...
Thursday, February 16, 2017

देश बदलने में अपना योगदान करें [ कविता ]

›
           देश के संचालक का हम चुनाव करें भारतवासियों चलों फिर से मतदान करें, अधिकारों को यूॅं न बरबाद होने देना आने वाले कल पर फ...
‹
›
Home
View web version

About Me

My photo
Archana Singh
View my complete profile
Powered by Blogger.