भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Saturday, February 25, 2017

फजूल की बातें

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दिन-प्रतिदिन नेतागण आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला और भी प्रबल करते जा रहे हैं। अगर गंभीरता से विचार करें तो ये स्वयं के व्यक्तित्व का ही परिच...
Tuesday, February 21, 2017

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर व्यंग्य

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                         आखिर किसका विकास...? मैं वह उत्तर प्रदेश हूॅं भाई। जहाॅं वर्षों से परम्परा कायम है ‘सबका साथ,सबका विकास’ न हमने ह...
Sunday, February 19, 2017

जन-जन की आॅंखों में धूल [ कविता ]

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वचनों का मायाजाल क्यों बुन रहे हो ? जन-जन की आॅंखों में धूल झोंक रहे हो। स्वयं के हित से ऊपर उठकर, शहीदों से कुछ सीखते तुम जो परिवार ह...
Thursday, February 16, 2017

देश बदलने में अपना योगदान करें [ कविता ]

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           देश के संचालक का हम चुनाव करें भारतवासियों चलों फिर से मतदान करें, अधिकारों को यूॅं न बरबाद होने देना आने वाले कल पर फ...
Tuesday, February 14, 2017

मतदान से पूर्व करना विचार [ कविता ]

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चलो बनाए नई सरकार ज्ञान का जलाएॅं ,फिर मशाल। अशिक्षा, गरीबी और भ्रष्टाचार दूर करने पर जो करे विचार। स्त्री सुरक्षा व बेरोजगारी प्रा...
Friday, February 10, 2017

चतुर वानर [ बाल कविता ]

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चतुर वानर की सुनो कहानी, वन में मित्रों संग, करता था मनमानी। बंदरिया संग घूमा करता, कच्चे-पक्के फल खाता था। पेड़-पेड़ पर धूम मचा...
Tuesday, February 7, 2017

कछुआ और खरगोश [बाल कविता ]

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चपल खरगोश वन में दौड़ता भागता, कछुए को रह-रह छेड़ा करता। दोनों खेल खेला करते , कभी उत्तर तो कभी दक्षिण भागते। एक दिन होड़ लग गई दो...
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