भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Tuesday, September 27, 2016

एक परिंदा ( कविता )

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एक परिंदा छज्जे पर न जाने कब आ बैठा ? उसे देख मैं प्रफुल्लित होती और सोचती पर होते उसके जैसा। कभी नील गगन उड़ जाती, कभी फुनगी पर जा ब...
Sunday, September 25, 2016

मंगला ( कहानी )

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    मंगल यानि जीवन में सब शुभ ही शुभ। फिर तो मंगला के जीवन में सब मंगल ही मंगल होना चाहिए पर जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझती मंगला जीव...
Monday, September 19, 2016

एक शाम (कविता )

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पंछी भी मुख मोड़ चले अपने नीड़ की ओर। मैं खड़ी अटेरी पर थामें  शाम की डोर। मन व्याकुल हो चला पी का कहॉं है ठौर ? ये एक शाम की बात नहीं...
Thursday, September 15, 2016

तुलिका और मैं.....

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Tuesday, September 13, 2016

हरि हो गति मेरी..............गौरी दिवाकर की प्रस्तुति

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गौरी दिवाकर अंतर्राष्ट्रीय  स्तर की नृत्यांगना है, आज उसकी पहचान राष्ट्र  में ही नहीं विश्व में भी प्रख्यात है। जैसा कि उसके नाम में ही ख्य...
Thursday, September 8, 2016

बेटी का जन्म ( कविता )

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  न जाने मुझे ये कैसा भ्रम हुआ ? गॉंव घरों में बॅंटते देख लड्डू मैंने पूछा,‘आज कैसा शगुन हुआ?’ हॉं,‘आज एक बेटी का जन्म हुआ।’ चलो देर स...
Sunday, September 4, 2016

शिक्षक को प्रणाम ( कविता )

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       गुरुजन हैं मंदिर समान शिक्षक को शत-शत प्रणाम, ज्ञान की वे नित ज्योति जलाते उज्ज्वल हमारा भविष्य बनाते। सत्य, प्रेम का...
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