भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Thursday, September 8, 2016

बेटी का जन्म ( कविता )

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  न जाने मुझे ये कैसा भ्रम हुआ ? गॉंव घरों में बॅंटते देख लड्डू मैंने पूछा,‘आज कैसा शगुन हुआ?’ हॉं,‘आज एक बेटी का जन्म हुआ।’ चलो देर स...
Sunday, September 4, 2016

शिक्षक को प्रणाम ( कविता )

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       गुरुजन हैं मंदिर समान शिक्षक को शत-शत प्रणाम, ज्ञान की वे नित ज्योति जलाते उज्ज्वल हमारा भविष्य बनाते। सत्य, प्रेम का...
Friday, September 2, 2016

तुलिका और मैं.......

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Wednesday, August 31, 2016

अब तो कर ले अपने मन की ( कविता )

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                  चल सोच बदल जीवन की, अब तो कर ले अपने मन की। न तो नौकरी की चिंता सिर पर , न बच्चों की किलकारी सुनाई देती । अब न रही ...
Sunday, August 28, 2016

गुलाब ( कविता )

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गुलाब को जब मुस्कुराते देखी, पूछी, ‘कैसे रहता है तू इतना खुश सदा ?’ समीर की बाहों में है झूलता, कॉंटों संग रहकर मंद मुस्काता, जीने क...
Wednesday, August 24, 2016

जय जय नन्दलाल

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लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो, मंगल गीत गा, जय जयकार करो । समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप  का। ...
Wednesday, August 17, 2016

मित्रता (कविता )

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                  पावन है यह रिश्ता मानो  महत्वत्ता जो इसकी पहचानो। लहू के रंग से बढ़कर जानो मित्रता धन अनमोल है मानो। बीज मित्रता का त...
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