भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Wednesday, August 31, 2016

अब तो कर ले अपने मन की ( कविता )

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                  चल सोच बदल जीवन की, अब तो कर ले अपने मन की। न तो नौकरी की चिंता सिर पर , न बच्चों की किलकारी सुनाई देती । अब न रही ...
Sunday, August 28, 2016

गुलाब ( कविता )

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गुलाब को जब मुस्कुराते देखी, पूछी, ‘कैसे रहता है तू इतना खुश सदा ?’ समीर की बाहों में है झूलता, कॉंटों संग रहकर मंद मुस्काता, जीने क...
Wednesday, August 24, 2016

जय जय नन्दलाल

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लड्डू  गोपाल कहो या नन्द लाल कहो, मंगल गीत गा, जय जयकार करो । समस्त जगत को संदेश दिए प्रेम का विष्णु अवतार लिए, बाल कृष्ण रूप  का। ...
Wednesday, August 17, 2016

मित्रता (कविता )

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                  पावन है यह रिश्ता मानो  महत्वत्ता जो इसकी पहचानो। लहू के रंग से बढ़कर जानो मित्रता धन अनमोल है मानो। बीज मित्रता का त...
Sunday, August 14, 2016

युवा तुम्हें पुकारता है आवाम ( कविता )

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युवा तुम्हें पुकारता है आवाम ध्वज का हमेशा रखा जिसने मान। कर्मभूमि समझ देश को वे वीर सदा देते रहे जो अपना योगदान।        युवा तुम्हें...
Monday, August 8, 2016

तुलिका और मैं.......

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Wednesday, August 3, 2016

अभयदान (कविता )

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 मृत्यु के बाद ,शरीर को कुछ ज्ञात कहॉं ?  मरण पश्चात् सब है खाक यहॉं।  नूतन शरीर प्राप्त कर जन्म है लेना  फिर व्यर्थ है अपने पलकों को ...
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