Wednesday, August 3, 2016

अभयदान (कविता )



 मृत्यु के बाद ,शरीर को कुछ ज्ञात कहॉं ?
 मरण पश्चात् सब है खाक यहॉं।
 नूतन शरीर प्राप्त कर जन्म है लेना
 फिर व्यर्थ है अपने पलकों को भिंगोना  ।
 कर सदुपयोग शरीर के हर अंग का
 औरों को अभयदान तुझे है अब देना ।
 मानवता का फर्ज है निभाना यहॉं,
 सुविचार व कर्त्तव्य से बना ये जहॉं।
 स्वयं को जीवित पा सकता औरों में ,
 जो कठिन संकल्प ले अग्रसर हो।
 नेत्रहीन के जीवन को रौशनकर,
 कुदरत की सुंदरता को है दिखाना ।
 पलकों तले पलते स्वप्न को
 'नेत्रदान' कर साकार है बनाना ।
 धड़कन ही है जो जिन्दा होने का
 पल-पल एहसास कराता है
 जो तू मृत्यु के करीब है तो क्या ?
 'ह्रदयदान' से दिलों में जीवित रह सकता है।
 जीवन को भयभीत बनाता है
 कर्करोग सा भयंकर महाकाल।
 भरना है औरों के जीवन में हरियाली
 'रक्त्दान' से मानव को मिल जाए खुशहाली ।
 औरों को सुख देकर हे मानव
 परमसुख का आभास है होता।
 'गुर्दादान' कर शरीर रुपी मशीन को,
 स्वस्थ व गतिशील सूत्र में पिरोता।
 'गौदान' को माना गया है उत्तम
 पर मानव का कर्ज उतार सर्वप्रथम।
 अंगदान देकर औरों को तू अब
 अभयदान का कार्य कर सर्वोत्तम।
                     
                                                    ..........अर्चना सिंह जया




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