भावांजलि

सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।

Sunday, June 26, 2016

रेणू धर्म ( कहानी )

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        आज सुबह से उठकर मेरा मन कुछ अनमना -सा हो रहा था। जैसे-तैसे कर मैंने पति के लिए नाश्ता बनाकर डिब्बे में रख दिया। पति के ऑफिस चले जान...
Tuesday, June 21, 2016

योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता)

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 योग को शामिल कर जीवन में  स्वस्थ शरीर की कामना कर।  जीने की कला छुपी है इसमें,  चित प्रसन्न होता है योग कर।   घर ,पाठशाला या दफ्त...
Saturday, June 18, 2016

वर्षा ( कविता )

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  वर्षा  तू कितनी भोली है,   नहीं जानती कब आना है   और तुझे कब जाना है?   बादल तेरे संग मँडराता   हवा तुम्हें बहा ले जाती।   जहाँ चाहत...
Saturday, June 11, 2016

नन्ही अभिलाषा ( कविता )

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शैशव की नन्ही अभिलाषा लेती सुंदर पंख पसार, चाह की न सीमा है फिर भी न लिया कोई ऋण उधार। डग मग पग और नन्हें कर से छूने चले हैं नभ विशाल,...
Thursday, June 9, 2016

वक्त को पहचान ( कविता )

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  वक्त को पहचान कर  लकीरों को मुट्ठी में ले थाम।  लम्हा- लम्हा सरक गया तो  फिर न कुछ हाथ आयेगा।  बिखरे हुए पन्नों के समान  लम्हा भी न...
Friday, June 3, 2016

बेटी की पीड़ा (कविता)

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  साँस अभी थमी नहीं ,रात अभी ढली नहीं   पथभ्रष्ट हो रहे सभी ,माँ चल दूर कहीं।   नन्ही परी पुकारती ,घर संसार वो सँवारती   फिर क्यों हमीं...

मैं युवा हूॅं (कविता)

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         मैं वो युवा हूॅं ,      आरोप लगा है जो हम पर      पथभ्रष्ट और गैर जिम्मेदार का,      अब मिटाना है और बदलना है सोच सबका।     ...
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