Tuesday, January 23, 2024

दिल्ली की सर्दी

दिल्ली दिल वालों की है जनाब, चाहे कोहरे बिछे हों राह 

सड़क किनारे टिक्की-चाट,कुल्फी आइसक्रीम लेकर हाथ।

शीतल पवन तन-मन को छूती, सर्दी का कराती है एहसास 

बच्चे,जवान, बूढ़े को फिर भी दिल्ली की सर्दी आती रास।

रह-रहकर दिल्ली-सर्दी,शिमला-नैनीताल की याद दिलाती 

युवाजन फैशन के वशीभूत जैसे, सर्दी उनको छू कहाँ पाती?

पर, गरीब बेचारे दो वक्त-रोटी के मारे सर्दी उन्हें नहीं सुहाती,

तन ढकने को वस्त्र नहीं, क्षुधा अग्नि भी ठंड से कहाँ बचाती?

दिल्ली की सर्दी में पशु-पक्षी-मानव शीत लहर की मार खाते

गरीब,बेघर,बेचारे दाल रोटी, चादर कंबल को तरसते हैं सारे। 

सर्दी अब रहम कर जीव-जन्तु संग मानव भी होगी आभारी।

कोहरे-धुंध में रो रही मजबूर-असहाय-गरीब जनता बेचारी।


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