वो आखिरी सफ़र...
नहीं कुछ अपना है जहां,
जुटाने में निकल गई जिंदगी वहां।
हर इक लम्हा कुछ धूप-छांव सा,
सुख दुःख संग गुजरता गया कारवां।
वो आखिरी सफ़र थी,
जिंदगी की चंद सांसें बचीं थीं जहां।
जीवन चादर के ताने-बाने में,
सुबह से शाम फिसलती हुई जिंदगी।
जुटाया भी, जुगाड़ भी करती गई,
फिर भी यथार्थ में,
खाली हाथ आई जिंदगी।
वो आखिरी सफ़र...
तोड़ा मरोड़ा वक्त ने हमें हर लम्हा,
अनोखा एहसास हुआ तो हमें भी।
कुछ सुनी अनसुनी है कहानियां,
बहुत कुछ सीखा गई जिंदगी।
वो आखिरी सफ़र,
अपनों से दर्द, गैरों से शिकवा
ज़ख्मों पर नमक छिड़क रही थी।
जीवन का नया तजुर्बा देकर,
आगे आगे चलती गई फिर भी जिंदगी।
कुछ स्वप्न पूरे, कुछ अधूरे ही,
रंगों से दूर हो रहे थे अरमान सभी।
वो आखिरी सफ़र था,
हमने भी आंसू पोंछे और
हंसकर कहा अलविदा जिंदगी।
दोबारा जो कभी मुलाकात हो भी गई,
अनजान बन, पहचानना न फिर कभी।
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