Wednesday, February 3, 2021

वो शब्द ही तो है

 वो 'शब्द' ही तो है।

दिलों के ज़ख्मों पर मरहम लगा दे,

या नमक मसलकर ताजा कर दे।

वो 'शब्द' ही तो है।

सरगम में पिरोकर मन के तार छेड़ दें,

भावों को व्यक्त कर अधूरे बोल पूरे कर दे।

वो 'शब्द' ही तो है।

कभी उलझनों में उलझा रुला दिया करता,

कभी सुलझा कर लबों पर मुस्कान सजा दे।

वो 'शब्द' ही तो है।

भावों को स्याही से कभी सजाया ख़तों में,

और कभी पन्नों पर हिय के भाव को उकेरा।

वो 'शब्द' ही तो है।

कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक में शामिल,

वर्णों से सुसज्जित सदा ही व्यक्त कर देता है।

वो 'शब्द' ही तो है। 

गीत में, संगीत में, उपासना में, प्रार्थना में 

नाम में, व्यवहार में, आचरण में जो बोले जाए।

वो 'शब्द' ही तो है।

शांति का संदेश गुंजायमान हो स्वर में,

या आंदोलन का आक्रोश हो स्वर में।

वो 'शब्द' ही तो है।

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