Saturday, September 26, 2020

मोबाइल - विषय

 मानव निर्मित यंत्र है ये कैसा,

 जीवन परिवर्तित हुआ कुछ ऐसा।

 स्वतंत्र हुआ करता था जो,

 मनुष्य उसी के आधीन हो गया।

 चारों पहर उसी में है खोए,

जगते सोते मोबाइल की जय होए।

 सारे रिश्ते सिमट गए हैं,

 स्क्रीन पर ही संपर्क रह गए हैं।

वार्तालाप भी वाह्टसअप में समाई,

ख़ामोशी है घर, परिवार में छाई।

शब्द भी सिमट गए अब तो,

भावनाएं भी जकड़ गई देखो।

एक पिंजर सा बना है इर्द-गिर्द गर समझो ,

तन-मन को जकड़ रखा है यह तो।

मोबाइल हुए जैसे-जैसे होशियार ,

मानव संवेदनहीन व निष्ठुर हुए यार।

जरूरत आदत में तब्दील हो गई,

मोबाइल बाबा की जय-जयकार हुई।

इस यंत्र का हमारे जीवन पर है पहरा,

आंखों, मस्तिष्क पर प्रभाव है गहरा।

लत लगी है हर उम्र के लोगों में मानो,

अबोध बालक भी अछूता नहीं है, जानो।

हमें नियंत्रित करने में सफल हो रहा,

बच्चे, जवान, बूढ़े को भ्रमित कर रहा।

माना अच्छाई भी है कई भाई,

वक्त बेवक्त, झटपट है बात कराई।

दूरियां, तन्हाइयां भी है मिटाता,

चेहरे से पहचान व संबंधों को मिलाता।

शिक्षा ग्रहण होता घर बैठे,

क्रिया कलाप भी होता है इससे।

खग सोचता कि विवेकहीन हुआ मानव देखो, 

यंत्र रूपी पिंजर में कैद कर रहा वो खुद को।

मोबाइल के संग सांस का बन गया रिश्ता,

आहिस्ता-आहिस्ता लगाम है कसता।

यंत्र पर आश्रित हो रहा देखो,

नियंत्रित कर रहा है हम सबको।







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