Wednesday, August 5, 2020

वक्त का खेल

कितने मजबूर हो गए हम,
पास होकर भी दूर हो गए हम।
बीत गई होली बस यूं ही,
न चढ़ा रंग प्रेम का सोचो।
दूरियां बढ़ा ली मानव ने,
वक्त ने रचा खेल है देखो।
'कोरोना' ने ज़िद कर ठानी,
इस दफा झुकेगा अहम तुम्हारा।
मानव को नया सबक मिलेगा,
प्रेम, विछोह को शायद समझेगा।
ईद पर्व भी कुछ इस तरह मनाई,
घर पर ही नमाज़ अदा कर,
खीर-पकवान की थाल सजाई।
बंद दीवारों में थोड़ी रौनक आई।
दूजा पर्व आ गया अनोखा,
बहन-भाई का स्नेह बंधन ऐसा,
डोरी,रोली व चंदन के जैसा।
पर इस वर्ष में किसने था सोचा
राखी बेबस पड़ी थाल में,
इंतजार की घड़ी हुई है लंबी।
जाने कब महामारी छटेगी?
एक जुट हो त्योहार करेंगे,
मिलकर हम सब फिर झूमेंगे।
वक्त की मार से जो मानव सीखे,
स्नेह,प्रेम संग से गर रहना सीखें।





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