मेघ देख शोर मचाते बच्चे,
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
छप-छप पानी में कूद लगाते,
कीचड़ में खुद को डुबोते।
रिम-झिम बारिश की बॅूंदों में
झूम-झूम कर हॅंसते गाते।
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
मोर पंख से रंग बिरंगे,
सपने इनके बाहर निकलते।
कपड़ों की न चिंता करते,
दौड़ भाग कर धूम मचाते।
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
पापा-मम्मी की एक न सुनते,
हरदम अपने दिल की करते।
तन मन अपना खुशियों से भरते,
पाठशाला से जब घर जाते बच्चे।
................ अर्चना सिंह जया
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