समाज के दुःशासनों से,
मानवता की रक्षा करनी है।
चलो मिलकर आवाज उठाए,
अब और नहीं पीड़ा सहनी है।
पूरब से उदय होने दे सूर्य को,
न बदल तू अब अपनी दिशा।
लगता प्रलय होने को है फिर,
जो पश्चिम का हमने रुख लिया।
नन्ही कलियों को क्यों मसलता,
कोमल पुष्पों ने क्या दोष किया?
जो तू इंसा है तो फिर क्यो?
इन्सानियत को कैसे दफना दिया?
शिक्षित कर जन-जन में चेतना,
जो बढ़ जाए मानवता की उम्र।
आज के युवा , तू रक्षा क़र
भविष्य देश का तुझ पर निर्भर।
----- अर्चना सिंह जया
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