Thursday, January 30, 2020

जय माँ शारदा प्रार्थना

जय माॅं शारदा! [प्रार्थना]


जय माॅं शारदा।
हे माॅं! वागेश्वरी
विद्या-बुद्धि दायनी
चरणों में अर्पित पुष्प नमन।
कर जोड करते वंदना हम।
हे माॅं! वीणापाणी
जय माॅं शारदा।
मुख पर तेज ज्ञान का
सद्भावना की करे हम याचना।
अज्ञानता दूर की है प्रार्थना।
हे माॅं! महाश्वेता
जय माॅं शारदा।
पद्मासना विराजती
शत्-शत् करते उपासना।
प्रातः सदैव करते आराधना।
हे माॅं! हंसवाहिनी,
जय माॅं शारदा!
ज्ञान ज्योति के प्रसार से,
सुगम पथ हमारा करना।
आशीष की कृपा कर देना।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर,
हे माॅं! सरस्वती आशीष देकर,
दामन खुशियों से भर देना।
                   ............ अर्चना सिंह जया

Sunday, January 26, 2020

हमारा देश

जल,थल,नभ में देखो
आज तिरंगा है, लहराया।
भाईचारे व विभिन्नता में
फिर से है, एकता दर्शाया।
भिन्न-भिन्न हैं रंग जहाँ 
भिन्न-भिन्न यहाँ हैं बोलियाँ।
शहीदों के समक्ष सदा
नत मस्तक होता है जहाँ।
वो देश है हिन्दुस्तान 
जिस पर रहता नाज़ सदा।
गगन धरा भी गुनगुना उठी
जय हिंंद, जय हिंद का गानकर।
आओ देश का सम्मान करें
संविधान, तिरंगा का मान रख।
उदार मन है धरती का
अंबर सा हृदय है जिसका।
आन,बान व शान 
है हमारे देश के गणतंत्र का।

Monday, January 13, 2020

उत्सव,उल्लास है लाया कविता

उत्सव, उल्लास है लाया [ कविता ]

 पर्व ,उत्सव है सदा मन को भाता
 ‘खेती पर्व’ संग उल्लास है लाता।
 कृषकों का मन पुलकित हो गाया,
 ‘‘खेतों में हरियाली आई,
 पीली सरसों देखो लहराई।
 खरीफ फसल पकने को आयी,
 सबके दिलों में है खुशियाॅं छाई ।’’
 नववर्ष का देख हो गया आगमन,
 पंजाब,हरियाणा,केरल,बंगाल,असम।
 पवित्र स्नान कर, देव को नमन
 अग्नि में कर समर्पित,नए अन्न।
 चहुॅंदिश पर्व की हुई हलचल।
 लोहड़ी मना गिद्दा-भांगड़ा कर।
 पैला, बीहू, सरहुल, ओणम, पोंगल
 एक दूसरे के रंग में रंगता चल।
 अभिन्न अंग हैं ये सब जीवन के,
 तिल के लड्ड़ू , चिवड़ा-गुड़ खाकर
 बैसाखी, संक्रांत का पर्व मनाकर।
 पतंगों की डोर ले थाम हाथ में
 बादलों को चल आएॅं छूकर ।
 रीति-रिवाज ,संस्कृति जोड़ कर
 प्रेम, एकता, सद्भावना जगा कर।
 दिलों को दिलों से जोड़ने आया,
 त्योहार अपने संग उल्लास है लाया।  
         
               ------------- अर्चना सिंह‘जया’

Saturday, January 11, 2020

10 JAN विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ।

                 हिंदी हैं हम

देवनागरी लिपि है हम सब का अभिमान,
हिन्दी भाषी का आगे बढ़कर करो सम्मान। 
बंद दीवारों में ही न करना इस पर विचार,
घर द्वार से बाहर भी कायम करने दो अधिकार।

कोकिला-सी मधुर है, मिश्री-सी हिन्दी बोली,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम सबकी हमजोली।
भिन्नता में भी है, यह एकता दर्शाती,
लाखों करोंड़ों भारतीय दिलों में है,जगह बनाती। 

दोहा, कविता, कहानी, उपन्यास, छंद,
हिन्दी भाषी कर लो अपनी आवाज बुलंद। 
स्वर-व्यंजन की सुंदर यह वर्णशाला,
सुर संगम-सी मनोरम होती वर्णमाला। 

निराला, दिनकर, गुप्त, पंत, सुमन,
जिनसे महका है, हिन्दी का शोभित चमन। 
आओ तुम करो समर्पित अपना तन मन, 
सींचो बगिया, चहक उठे हिन्दी से अपना वतन। 

                                                                                                             ----- अर्चना सिंह जया
                                          [ 12 सितम्बर 2009 राष्ट्रीय सहारा ‘जेन-एक्स’ में प्रकाशित ]

Wednesday, January 1, 2020

नव वर्ष का स्वागत

क्या छोड़ चलें,
क्या साथ ले चलें
गत वर्ष से कुछ
मीठी यादें समेंट चलें।
प्रेम,स्नेह,मुस्कान की
 थाल सजाकर ,
नव वर्ष आगंतुक का
 चल स्वागत करें ।
नव संकल्प लें औ
 कुविचार त्याग चलें
रिश्तों के संग सुनहरे
 सपने पिरो चलें ।
निराशा को आशा में
तबदील कर चलें।
जीवन गुलिस्ताँ
पुषपों से महका चलें।

Monday, December 2, 2019

निर्भया

निर्भय हो निर्भया, नहीं साँस ले पाई जहाँ
क्या बात करें उस शहर,गाँव,गली की।
आज प्रियंका, कल फिर कोई अनामिका
अस्तित्व जिसका हो जाएगा तार-तार।
सह रही है वर्षों से घर-बाहर तिरस्कार,
कब तक चुप बैठे और सहे अत्याचार?
बोलने दो बहन- बेटियों को आज,अभी
वरना 'काली' बन करेगी दुष्टों का संहार।
बेटियाँ ही हैं क्यों संस्कारों की ठेकेदार,
बेटों को भी क्यों नहीं देते हैं संस्कार?
हर गली चौराहे पर है खड़ा दुःशासन
लाज बचाए कैसे ,वह असहाय बेचारी।
चार या दस वर्ष, या हो चालिस की नारी
कुदृष्टि से बचे कैसे, जहाँ हैं कई दुराचारी।
बालिकाओं पर ही है क्यों अंगुँली उठती
क्या बालक हैं यहाँ सारे ही सदाचारी?
सहजता,धैर्य, शालीनता का सबक त्याग
बुलंद करनी होगी ,हमें अब अपनी आवाज़।
मानवता व समाज की लेकर जिम्मेदारी
अब बेटी-बहू बनेगी, न्याय की अधिकारी।