Wednesday, May 6, 2020

अजीब विडंबना

अजीब विडंबना है देश की
जिंदगी या कोरोना में से
किसका चयन करें इंसान?
इतनी सी बात नहीं समझ रहा,
उल्लंघन कर्तव्यों का कर रहा।
दूध के लिए बच्चे हैं कतार में,
राशन के लिए माता बहनें हैं खड़ी।
विपदा की इस घड़ी में देखो,
पुरुष की आत्मपूर्ति के समक्ष
संवेदनाएँ जैसे धूमिल हुई पड़ी।
अमृत रस है न जाने ये कैसा ?
मद की चाहत हुई है सर्वोपरि।
पलभर का धैर्य नहीं देखो इनको,
स्वहित हो गया परिवार से श्रेष्ठ।
शराब से दूर ये रह नहीं सकते
खो रहा आत्मसंयम वह कैसे ?
चावल,दाल,रोटी की जरुरत
से क्या है यह अधिक जरुरी?
मदिरा पान कर सेहत से खेलना ,
मदहोश हो परिवार की शांति हर लेना।
धन की कमी कहाँ है देखो ?
मन पर संयम खो बैठा है वह तो।
सुख दुःख में मदिरा पान कर
मानवता की सीमा लांघ रहा वो।
एक बूँद की तलब ऐसी भी क्या?
मानसिक संतुलन जैसे खो बैठा।
वीरों की वीरता को देखो,
देशहित कर्म करना कुछ सीखो।
तुम परिवार व समाज हित के
दायित्वों को ही निभा लो।
इंसान हो गर प्रथम तुम
इंसानियत को ही संभालो।
जीवन अपनों के लिए देकर
सद्कर्म का राह अपना लो।
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Thursday, April 30, 2020

A Story

निःशब्द

🙏
जाने -अनजाने में गुनाह कर बैठे हैं शायद,
वरना सज़ा का हकदार यूँ हर कोई न होता।
  💐🙏                   
कल निःशब्द था मैं,आज भी निःशब्द है इंसान
दुःख की इस घड़ी में स्तब्ध खड़ा है हिन्दुस्तान।
🙏☺️

Wednesday, April 29, 2020

सांंसों की गिनती


वक्त के साथ साथ ही,
लम्हों की गिनती कम होने लगी।
मंजिल से पहले ही यहाँ
राह लम्बी, धुंधली सी लगने लगी।
क्या जाने कब धूल,
दिल दर्पण पर गहरे होते गए।
अपने ही चेहरे आइने में
क्यों अपरिचित से लगने लगे?
मन को आशा थी चाहत की,
आँधियों में भी चिराग जलाए रखे।
बहते आँसुओं की दाँसता,
मन के कोने में ही दफ़नाए रखे।
साँसों की डोर से पहले
रिश्तों की डोर कमजोर होने लगी।
जिंदगी से पहले यहां,
सांसों की गिनती कम होने लगी।






Saturday, April 25, 2020

जीतेंगे कल

विश्वास का दीप जलाता चल
आशा के पर से उड़ान भर।
नव सूर्य उदय होगा फिर कल
मन के तम को हराता चल।
जो आज है बन जाएगा कल
कठिन हो या हो चाहे सरल।
वक्त कभी न ठहरा है पलभर
फिर गम न कर यूँ रह रहकर।
धैर्य,प्रेम,परोपकार,विवेक से
हारेगा कोरोना,जीतेंगे हम कल।

Friday, April 10, 2020

कैसा संदेश


लाकडाउन है हर
गाँव-शहर डगर।
ऐसे में प्रातः
सुनाई दे गया,
काक का स्वर
न जाने देता है प्रतिदिन
हमें कैसा संदेश?
किस आगंतुक की
है सूचना दे रहा?
'कोरोना' भय या कोई
खुशी का संकेत।
नित सवेरे सन्नाटे में
पक्षियों का स्वर
स्पष्ट है सुनाई दे रहा।
स्वतंत्र होकर पक्षीवृंद
इक संदेश हैं दे रहे,
झकझोर कर कह रहे।
महसूस कर हे मानव!
स्वर्ण पिंजर का दर्द।
दीवारें हों जैसी भी
ईंट या लोहे की होंं,
या हो कुंठित विचारों की
हृदय की टीस समान
चाहे वो जीव हो कोई भी।





Friday, April 3, 2020

मैं दीप

मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
तम को दूर कर,
मन में विश्वास भर।
औरों के जीवन को
प्रकाशित हूँ करती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
ना मैं मुश्लिम,ना हिन्दू
मैं आशा को
प्रज्ज्वलित करती।
उल्लास लिए,
जन-जन में
चेतना भरती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।
जब अंधकार हो
चहुँ ओर घना,
तब प्रकाश का
चादर फैलाकर
दामन में हूँ लेती।
मैं दीप हूँ,
मैं रोशनी हूँ।