Wednesday, January 1, 2020

नव वर्ष का स्वागत

क्या छोड़ चलें,
क्या साथ ले चलें
गत वर्ष से कुछ
मीठी यादें समेंट चलें।
प्रेम,स्नेह,मुस्कान की
 थाल सजाकर ,
नव वर्ष आगंतुक का
 चल स्वागत करें ।
नव संकल्प लें औ
 कुविचार त्याग चलें
रिश्तों के संग सुनहरे
 सपने पिरो चलें ।
निराशा को आशा में
तबदील कर चलें।
जीवन गुलिस्ताँ
पुषपों से महका चलें।

Monday, December 2, 2019

निर्भया

निर्भय हो निर्भया, नहीं साँस ले पाई जहाँ
क्या बात करें उस शहर,गाँव,गली की।
आज प्रियंका, कल फिर कोई अनामिका
अस्तित्व जिसका हो जाएगा तार-तार।
सह रही है वर्षों से घर-बाहर तिरस्कार,
कब तक चुप बैठे और सहे अत्याचार?
बोलने दो बहन- बेटियों को आज,अभी
वरना 'काली' बन करेगी दुष्टों का संहार।
बेटियाँ ही हैं क्यों संस्कारों की ठेकेदार,
बेटों को भी क्यों नहीं देते हैं संस्कार?
हर गली चौराहे पर है खड़ा दुःशासन
लाज बचाए कैसे ,वह असहाय बेचारी।
चार या दस वर्ष, या हो चालिस की नारी
कुदृष्टि से बचे कैसे, जहाँ हैं कई दुराचारी।
बालिकाओं पर ही है क्यों अंगुँली उठती
क्या बालक हैं यहाँ सारे ही सदाचारी?
सहजता,धैर्य, शालीनता का सबक त्याग
बुलंद करनी होगी ,हमें अब अपनी आवाज़।
मानवता व समाज की लेकर जिम्मेदारी
अब बेटी-बहू बनेगी, न्याय की अधिकारी।


Thursday, November 14, 2019

सुहाना बचपन


 😊🎈🎶🎉🍭🎉
मुट्ठी खोल,समेट लो बचपन
कहीं खो न जाए अलहड़पन।
चंचल ,चंदन सा चितवन
मासूम होता है बाल मन।
आज और कल याद रहे सदा,
हमारा, तुम्हारा, सबका बालपन।
आज का दिन, खुशियाँ है लाया
'बाल दिवस' हमने भी है मनाया।
गुब्बारे,टाफी,बिस्किट मन भाया
जीवन में बचपन को अपनाया ।
गीत, संगीत और कोलाहल से
हमने आज व्यवहार है सजाया।
अपने बच्चों संग बच्चा बन,
घर बाहर यूँ है धूम मचाया।
सुहाना बचपन जैसे लौटकर
आज हमारे आँगन हो आया।
🎈🎉🎶🍭😊



Saturday, November 9, 2019

मंथन

अयोध्या की भूमि का
होने को है मंथन आज।
उच्च विचारों से प्राप्त
होने को है प्रेम बंधन साज़।
राम रहीम सब एक हैं
ईश खुदा का करो अभिनंदन।
वाद विवाद में क्या रखा है?
मानवता का दो परिचय आज।
लहू दोनों का लाल ही है
फिर कैसा है वाद विवाद?
आसमाँ भूमि के बीच
बिखेरो हवा में प्रेम संवाद।
सभी ने माना हिंदुस्तान के
दोनों ही हैं सरताज।
विश्व को संदेश है देना
धर्म जाति से भी है ऊपर
मानवता का श्रेष्ठ भाव।
कायम रहे दोनों के मध्य
सदा स्नेह प्रेम का साथ।







गांधीगिरी पर कहानी


 Gandhigiri 😊💐
Stories Only in100 words

 एक शाम मेरी नज़र झुग्गी के बेबस महिला पर पड़ी जिसका पति उसे मार रहा था। मैं बचाव करने पहुँची, और लोग भी एकत्रित हो गए । मैंने उसके पति से पूछा कि किस कारण इसे मार रहे हो । महिला ने कहा, मैडम ये मेरे बच्ची को पढ़ने जाने नहीं देना चाहता है, फीस के पैसे से जुआ खेलता है। फिर मैंने डाँट लगाते हुए कहा कि थाने में मैं तुम्हारी शिकायत दर्ज करा दूँगी। मैंने मोबाइल में उसकी तस्वीर ली, ताकि पति के मन में डर घर कर जाए। उसने पैर पकड़ लिए और माफी माँगी। वहीं खड़ी सहेली ने हँसते हुए कहा, वाह! तुम्हारी गाँधीगिरी तो चल पड़ी।
..................😊.................

बस में बैठे युवक ने केले के छिलके को बस से बाहर फेंका। वहीं बारह वर्ष के एक बालक ने उस छिलके को उठा लिया। बस वाले युवक ने बाहर निकल कर फिर एक छिलके को नीचे गिरा दिया। उस बालक ने फिर से उठाया। नवयुवक ने स्टाप पर मेरे बगल में स्थान ग्रहण करने से पूर्व उस बालक को एक केला खाने को दिया, बालक ने केले को छीलकर उस युवक के करीब फेंक दिया और खाने लगा। युवक ने क्रोध में कहा कि यहाँ क्यों फेंक रहे हो, कूड़ेदान में क्यों नहीं डालते? तभी मैं तपाक् से बोल पड़ी कि फिर आपने नीचे क्यों फेंका? सर्वप्रथम खुद को बदलिए, महाशय।


Monday, October 28, 2019

पर्व है दीपों का




      पर्व है दीपों का

दिवाली की अगली भोर ,
देख मैं रह गया भौंचक्का।
बालकनी के कोने में,
सहमा कपोत मैंने देखा।
रात्रि के अंधियारे में ,
न जाने कब आ बैठा ?
देख मेरी ओर मानो 
व्यथा कुछ यूँ था कहता।
''पटाखों की धुंध में, 
अपना शिशु मैं खो बैठा ।
ध्वनि, वायु प्रदूषण का 
देखो प्रभाव है कैसा ?
घर तो मेरा छीन लिया 
ये बुद्धिजीवि है कैसा?''
कंकड़ पत्थर के मकानों ने 
सुकून हमारा है छीना ।
हिय पत्थर का हो गया जिसका 
सिर्फ़ सोचता है वह खुद का ।
पलकें गीली हो गई मेरी
पीड़ा महसूस कर जब देखा।
दीपावली पर्व है दीपों का
ध्वनि प्रदूषण फिर कैसा?
राम युग रहा नहीं अब
कलयुग है यह कैसा ?
आने वाली पीढ़ी व
बुजुर्गों के विषय में भी,
नहीं कभी है यह सोचता।
सिर झुका वह निवेदन करता
''दीप जला जीवन रौशन कर ,
खुशियों से घर का कोना /''







Thursday, October 17, 2019

मैंने क्या किया ?



मैंने किया क्या ?
सच तो है
आज उम्र के इस पड़ाव पर
पूछा गया है प्रश्न
तुमने किया क्या?
एक घर को छोड़ आई
नए मकान को घर बनाई।
और मैंने किया क्या ?
जो अपने नहीं थे,
उन्हें अपना बना ली।
मान सम्मान दिया,
प्यार, स्नेह भी किया।
पर मैंने किया क्या?
नव बीज भी रोपा स्नेह से
पौधे बनने तक ख्याल रखा।
साँझ सवेरे नित जतन कर
फल पाने का इंतजार किया।
आँधी में भी धैर्य न खोया,
उम्मीद का दीप जलाए रखा।
मुस्कुराकर हर पीर सही,
स्वाभिमान को गठरी में रखा।
और मैंने किया क्या?
बिखरे पल को सहेजती रही,
औरों को सर्वप्रथम है रखा।
कुछ प्रयास तुमने किया,
तो कुछ प्रयास हमने भी किया।
गर तुम आगे सदा रहे तो
हम भी साथ में थे खड़े।
अप्रत्यक्ष रूप में ही सही,
तिनका बन कर ही डटे रहे।
पर मैंने क्या किया ?
सच ही तो है कभी
आगे आकर जताया ही नहीं।
अपने कर्मों को अहमियत,
हमने खुद ही दिया नहीं।
सच ही तो है कि
हमने क्या ही किया?
चादर, पर्दों, दीवारों की धूल
साफ़ तो हमने कर दिया।
पर कभी औरों के मन के
धूल को साफ ना हमने किया ।
सच ही तो है, हे ईश्वर
मैंने कुछ तो नहीं किया।
उम्र जाने किधर गई?
चेहरे पर झुर्रिया आ गई।
आईना जब भी हूँ देखती
अक्स मेरा है पूछता कि
आज तक मैंने क्या किया ?