न तलाशा करो ,सामानों में उनके निशाँ।
जख्म गहरें है दिलों पे, खोजो न यहाँ वहाँ।
दूरियों की कसक बढ़ती जाती है हर लम्हाँ
दिन खामोश सी और रात हो जाती है बेज़ुबा।
अपने ज़बातों को न संजोया करो सिर्फ पन्नों में
साथी संग बाँटा करो बिखरने न दो जहाँ तहाँ।
सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।