सागर ऊर्मि की तरह मानव हृदय में भी कई भाव उभरते हैं जिसे शब्दों में पिरोने की छोटी -सी कोशिश है। मेरी ‘भावांजलि ’ मे एकत्रित रचनाएॅं दोनों हाथों से आप सभी को समर्पित है। आशा करती हूॅं कि मेरा ये प्रयास आप के अंतर्मन को छू पाने में सफल होगा।
Sunday, August 25, 2019
गज़ल
न तलाशा करो ,सामानों में उनके निशाँ। जख्म गहरें है दिलों पे, खोजो न यहाँ वहाँ। दूरियों की कसक बढ़ती जाती है हर लम्हाँ दिन खामोश सी और रात हो जाती है बेज़ुबा। अपने ज़बातों को न संजोया करो सिर्फ पन्नों में साथी संग बाँटा करो बिखरने न दो जहाँ तहाँ।
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